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________________ सुखद शताब्दी भी आये -जिनेन्द्र मुनि (काव्यतीर्थ) अभिनन्दन के पूण्य पलों में, पावन प्रतिभा से पूजित हैं, __ करते हैं हम अभिनन्दन । शांति धाम जीवन अभिराम । परम विदुषी महासती श्री-, जन-मन श्रद्धा का सागर है, कुसुमवतीजी को धन-धन ॥१॥ सौम्य स्वभावी लगे ललाम ॥७॥ जननी के संग संयम लेकर, शान्ति प्रेम का सर्जन करती, जीवन को महकाया है। अप्रमत्त जीवन की धार । ज्ञान ध्यान जप तप समता से, अगणित हैं उपकार आपके, जीवन उच्च बनाया है ॥२॥ भूल न पायेगा संसार ॥८॥ आगम ज्ञान गहन है चिन्तन, भारत के विभिन्न प्रान्त में, प्रवचन पटुता भी भारी । धर्म-ध्वजा फहराती हैं। ज्ञानामृत के शुभ सिंचन से, जिनशासन की सेवा करके, खिल उठती जन-मन क्यारी ॥३॥ जीवन धन्य बनाती हैं ।।६।। हृदय कुसुम-सा कोमल पावन, अमरसाधिका श्रमणीरत्न हे !, जन-मन सहज लुभाता है। धर्म-ज्ञान का मंगल दीप । नदी पूर सम जन समूह, निलिप्त कमल-सी भव्य आत्मा, श्रद्धा से दौड़ा आता है ।।४।। मन मोती तन सुन्दर सीप ॥१०॥ जलधारा की भाँति जग में, चारित्र सौरभ दिव्यप्रभा से, जिनवाणी वर्षाती है। गरिमा उज्ज्वल छा रही है। पुण्यवती गुणवती सतीजी, अनुपमा और निरुपमादि, नई बहारें लाती हैं ॥१॥ नई रोशनी ला रही है ॥११॥ प्रेम स्नेह सद्भाव सम्प के, शिष्याएँ भी परम विदुषी, जन मन दीप जलाती हैं। प्रखरमति गुण विनयवती। सद्गुण सुमनों से शोभित मन, ज्ञानालोक लोक में करती. जग-जीवन महकाती हैं ॥६॥ एक-एक से ज्ञानवती ॥१२॥ दीक्षा अर्ध शताब्दी आई, सुखद शताब्दी भी आये। गुरु गणेश सह 'मुनि जिनेन्द्र' भी, यही भाव मन में लाये ॥१३।। प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainettorary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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