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________________ NAATTA थे। अब वे भोगी थे । भोग से योग ग्रहण तो करते ही यों ही समय बीतता रहा । साध्वी अरणक को का हैं, पर कच्चे मन वाले योगी से भोगी बन जाते हैं। ढंढ़ती रही और अरणक भोगों में डूबता रहा । एक | एक झटके से ही अरणक मुनि बहुत नीचे गिर चुके दिन संयोग बना। साध्वी भद्रा उक्त सून्दरी के Vs भवन के नीचे ही चिल्ला रही थी । सुन्दरी के अंक ___ अब वे रात-दिन भोगों में डबे रहते। सुन्दरी पाश में लेटे अरणक के कानों में अपने नाम की || उनका उबटन करती, स्नान कराती, पंखा झलती आवाज पड़ी तो वे विद्य त के झटके की तरह उठे। 15 और वे उसी को अंक में समेटे पड़े रहते । रात तो सुन्दरी चिल्लाती रही-सुनो तो, सुनो स्वामी, कहाँ 19 रात थी ही, उनके लिए अब दिन भी रात ही था। जाते हो ? पर अरणक कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं |IC ऐसे ही उनके दिन गुजरने लगे। देखा । वे धड़ाधड़ सीढ़ियाँ उतरते हुए साध्वी माँ । के पास पहुँचे-माँ ! मैं तेरा अरणक हूँ। + + + साध्वी भद्रा सुध-बुध खोकर स्तब्ध-सी अपने अरणक मुनि गोचरी से नहीं लौटे । संध्या हो सामने खडे युवक को देखने लगी। उसका भेष बड़ा र गई, फिर रात भी हुई । संघ के मुनियों को चिन्ता आकर्षक था। रेशमी अधोवस्त्र, रेशमी ही उत्तरीय हुई, वे सब उन्हें ढूंढने निकले । उनके साथ में और पैरों में जड़ाऊ जूते । सचिक्कण काले केशों में श्रावक भी थे । रात इसी चर्चा में बीती कि आखिर सगन्ध आ रही थी। बड़ी देर बाद साध्वी ने , मुनि अरणक कहाँ लापता हो गए? अपना कर्तव्य कहापूरा कर साधुओं ने साध्दियों के उपाश्रय में संवाद "तु कोई ठग है। तू मेरा अरणक नहीं हो भिजवा दिया कि साध्वी भद्रा के संसारी नाते से सकता। मेरा अरणक तो वह था, जिसने विवाह पुत्र मुनि अरणक गोचरी के लिए गये थे, वे अभी करने से इन्कार कर दिया था। मेरे अरणक ने तो तक नहीं लौटे हैं। माता-पिता से पूर्व दीक्षा लेने का निश्चय प्रकट माँ की ममता का सागर सीमा तोड़ गया। किया था। मेरे अरणक के विचारों में ऐसा बदसाध्वी भद्रा व्याकुल होकर साधारण माँ की तरह लाव आया था कि दीक्षा से पूर्व उसके पिता ने रोने लगी । वे उपाश्रय छोड़कर अरणक को ढूंढने कहा था-पुत्र, तूने आज तक ग्रीष्म की धूप नहीं निकल पड़ीं। वे पागलों की तरह जोर-जोर से देखी, अपने हाथ से पानी लेकर भी नहीं पिया। आवाज लगातीं-बेटा अरणक, तू कहाँ है ? अरणक दोपहरी में तू विहार कैसे करेगा और कभी अचित्त 12 तू मेरे पास आ जा, बेटे ! वे जब चलते-चलते, जल न मिला तो प्यासा कैसे रह पायेगा? बोलते-बोलते थक जातीं तो किसी वृक्ष के मूल में "युवक ! इसके उत्तर में मेरे पुत्र अरणक ने कहा बैठकर बैठ जातीं। थकावट की अति के कारण था-भोगी जब योगी बन जाता है तो उसकी दृष्टि बैठे-बैठे ही सो जातीं। फिर उठकर चल देतीं। बदल जाती है। उसके विचार पहले जैसे नहीं बस्ती वाले कहते-शायद बेचारी का बेटा मर रहते । शक्ति विचारों से मिलती है। जब मेरे गया है, सो उसके मोह में पागल होकर उसे पुका- विचार वदले हैं तो चारित्र-पालन की शक्ति आ ही 12. रती फिरती है। गई है। - साध्वी भद्रा को पागल समझकर बस्ती के बच्चे "तो तू मेरा पुत्र कैसे हो सकता है ? मेरे पुत्र उनके पीछे-पीछे तालियाँ बजाकर चलते। कभी में तो चारित्रपालन की शक्ति थी। वह योगी था, 11) उनकी आवाज के साथ शरारती बच्चे भी आवाज पर तू तो भोगी है । मेरा अरणक तो मुनि था, तू देते-ओ अरणक ! तू कहाँ है ? मेरा अरणक कैसे हो सकता है ? तू मुझे छलने का सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन ५११ ( CK) साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Yer Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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