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________________ में रहो, पर भीतर त्याग और निवृत्ति का भाव ही-मन उन्होंने सोच लिया था कि अरणक मुनि के बना रहे । संसार को दीर्घ स्वप्न समझो। इस लिए मैं ही गोचरी करने जाया करूंगा। यह तो का स्वप्न को स्वप्न ही मान लो, यह निश्चय कर सुकुमार है । धूप में कुम्हला जाएगा। लो कि एक मात्र सत्य धर्म ही है। जब तक आपके साधु संघ ने तगरा नगरी से अन्यत्र विहार भीतर संसार रहेगा, तब तक बाहरी त्याग-तपस्या किया। साध्वी भद्रा तो साध्वो संघ में मिल गई। मात्र काया कष्ट ही है-साधना नहीं।" मुनि दत्त और मुनि अरणक पितामुनि और पुत्र- || ___अर्हन्मित्र मुनि की देशना लम्बी और तथ्यों मुनि के नाम से भी संघ में जाने गए। से भरी थी। अरणक के मन में दीक्षा लेने को मुनि पर अब भी लाड़ करते इच्छा बलवती हुई । श्रेष्ठी दत्त भी संसार छोड़ थे। वे स्वयं गोचरी को जाते और पुत्र मुनि के ||MS कर मुनि बनना चाहते थे। सेठानी भो उनसे पीछे पाछ लिए आहार-पानी की व्यवस्था करते । उनके इस रहना नहीं चाहती थी। लेकिन ये विचार तोनों के आचरण को देखकर कुछ मुनियों ने दत्त मुनि से ) मन में ही थे। सबसे पहले मन को बात अरणक ने कहाकही 'पिताजी, मैं चारित्र का पालन करके अपना 'मुने, आप अरणक मुनि के हित में अच्छा नहीं का मानव भव सफल करूंगा।" कर रहे । उन्हें स्वयं ही गोचरी के लिए जाने "चारित्र का पालन बच्चों का खेल नहीं है, और दीजिए । साधना तो स्वयं ही की जाती है।' वत्स !" श्रेष्ठी दत्त ने कहा-“तूने आज तक ग्रीष्म __'मेरा अन्त तो अरणक से पहले होगा। मेरे 10 को धप नहीं देखी । अपने हाथ से पानी लेकर भी बाद वह अपने सभी काम स्वयं हो करेगा।' मुनि- AE नहीं पिया । तपती दोपहरी में तू विहार कैसे करेगा? दत्त ने कहा-'अरणक विहार कर लेता है, यही | If कभी अचित्त जल न मिला तो प्यासा कैसे रह बहुत है।' पाएगा?" अन्य मुनि मौन हो गए । पिता मुनिदत्त और "भोगी जब योगी बनता है तो उसकी दृष्टि पुत्र मुनिअरणक का यह सिलसिला चलता रहाबदल जाती है। उसके विचार पहले जैसे नहीं चलता रहा। रहते ।" अरणक ने पिता से कहा-"पूज्य तात, इसी क्रम में दत्तमुनि का आयुष्य पूर्ण हो गया | शक्ति विचारों से ही मिलती है । जब मेरे विचार तो वे परलोकवासी हो गये। उनके जाते हो अर-4 बदले हैं तो चारित्र पालन की शक्ति भी आ ही गई णक मूनि मानों अनाथ हो गये । वे भिक्षा लेने नहों जा पाये तो निराहार ही रह गये। तब संघ के ( "तो त अकेला मुनि नहीं बनेगा।' श्रेष्ठी दत्त मुनियों ने कई दिन अरणकमुनि को आहार लाकर बोले-“तेरे साथ मैं भी दीक्षा लूंगा।". दिया। लेकिन एक दिन सभी मुनियों ने अरणक "तो मैं आपसे पीछे रहँगी ?" सेठानो भदा ने मुनि से स्पष्ट कह दियापति से कहा- "मेरा भी तो परलोक है। मैं भी 'मुने, अब तुम किशोरवय के नहीं हो-युवा हो । साध्वी बनूंगी।" गये हो । चारित्र का पालन अपने बल पर हो होता | सेठानी भद्रा, श्रेष्ठी दत्त और श्रेष्ठिपत्र अर- है । तुम स्वयं गोचरी के लिए जाया करो।' णक-तीनों ने अहमित्र से दीक्षा ले ली। मुनि अरणक मुनि ने स्वीकार कर लिया। संयोग ) बनकर भी दत्त का पुत्रमोह कम नहीं हुआ। मन- ऐसा बना कि ये दिन ग्रीष्म के दिन थे। पहले दिन सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन - Hd साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Witication Internation S AS Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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