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________________ ya (चा FAS FOR शरण सम्प्राप्त होती है। सम्भव है इसीलिए एक हैं। कुछ वर्ष ऊपर ६ दशक की आयु चल रही है, सन्त प्रेमी विद्वान् को यह कहना पड़ा हो- तथापि ये भारण्ड पक्षी की तरह पूर्णतया जागशैले शैले न माणिक्यं रूकता से अपनी संयमयात्रा सम्पन्न कर रही हैं। ___ मौक्तिकं न गजे गजे, दस वर्षों की छोटी सी आयु में आप दीक्षा के साधवो नहि सर्वत्र, आसन पर विराजमान हो गये, जब से आप चन्दनं न वने वने दीक्षित हुए हैं तब से ही जप, तप, शास्त्र स्वा ध्याय, संयमसाधना, समाज सेवा, और पठन-पाठन जैसे माणिक्य प्रत्येक पर्वत में पैदा नहीं होता, में ही आप अपना अधिक समय लगाते हैं । श्री वर्धo सब हाथियों के मस्तक में मोती नहीं मिलते और मान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के आचार्य असली चन्दन हर वन में हाथ नहीं लगता, ऐसे ही सम्राट गुरुदेव पूज्य श्री आत्माराम जी म० फरजगत का कल्याण करने वाले चलते-फिरते तीर्थ- माया करते थे कि संयमसाधना साधुजीवन की राज सन्तों का समागम भी हर स्थान पर सम्प्राप्त शोभा है, सुषमा है, पावन ज्योति है, और आकनहीं होता। र्षक चमक है। पुष्प की शोभा जैसे उसकी सुगन्ध साध्वीरत्न श्री कुसुमवती जी से हैं वैसे सन्त-शोभा की महत्ता संयम साधना की निर्मल सरल और सच्ची आराधना से सम्पन्न साधु संघ में साधु व साध्वी दोनों का परि- हुआ करती है। पूज्य गुरुदेव यह भी फरमाया ग्रहण किया जाता है। अतीत के इतिहास ने हमें करते थे कि संयमसाधना यदि चरम सीमा तक ऐसे-ऐसे साध्वीरत्न समर्पित किये हैं जिनकी पहुँच जाए तो उसमें समस्त ऋद्धि-सिद्धियों के संयमसाधना एक आदर्श संयमसाधना थी, त्याग- दर्शन होने लगते हैं। वैराग्य के दीपक लेकर जो यत्र, तत्र, सर्वत्र, पद- साधना यदि अखण्ड हो. निर्विकार हो, भ्रमण करते रहे और लाखों द्विपद-पंशु-रूप पावन हो तो संयमी के हाथों पर रखी आग भी मानवों को मानव वनने की पावन कला उसे जला नहीं सकती। यह परम सौभाग्य की बात सिखाते रहे । जिनकी तप-साधना, ब्रह्मचर्य आरा- है कि महामान्या महासती श्री कुसूमवती जी संयम धना, आर वीतराग देव की उपासना इतनी कठोर साधना के महापथ पर बडी दृढता. स्थिरता, एवं विलक्षण रही कि मर्त्यलोक ने ही नहीं स्वर्ग प्रामाणिकता, सरलता एवं पूर्ण आस्था के साथ लोक ने भी अपनी गरदनें झुका डालीं। बढ़ती जा रही हैं। महासती जी की संयमसाधना o आज पाठकों के सन्मुख मैं एक ऐसी ही साध्वी के ५० वर्ष सम्पन्न हो चुके हैं, दीक्षा स्वर्ण जयन्ती Oरत्न की जीवन रेखा, प्रस्तुत करने लगा हूँ जो की इस पावन बेला पर यही मंगल कामना करता हूँ संयमसाधना की जीवित प्रतिमा है। मेरी दृष्टि कि ये सौ वर्ष तक अपनी संयमसाधना के पावन में जो एक आदर्श साध्वीरत्न है। आज ये साधु सौरभ से जन-जन के मन को सुरभित करते रहें। जिगत में परम विदुषी, चारित्रशीला, अध्यात्म- शासनेश प्रभु महावीर से यही अभ्यर्थना योगिनी श्री कुसुमवतो जी म० के नाम से प्रख्यात करता हूँ। हो रही हैं । जैसे पताशा चारों ओर से मीठा होता ofहै वैसे ही इनका बचपन, इनकी जवानी तथा इनकी प्रौढ़ावस्था-इनकी ये सभी अवस्थाएँ त्याग वैराग्य की पावन सौरभ से सुरभित दिखाई दे रही प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 0 5 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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