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________________ चिन्तन सूत्र पुण्य और पाप काले कलूटे कोयले ने अश्रु बहाते हुए हीरे से कहा- हम दोनों एक ही खदान से पैदा हुए हैं पर दोनों के रंग और रूप में कितना अन्तर है। तुम्हारी ज्योतिर्मय किरणें जन जन के मन को मुग्ध करती हैं । सभी तुम्हारे को स्नेह और सद्भावना से अपनाते हैं। विविध आभूषणों में तुम्हें सजाते हैं और मखमल बिछी हुई तिजोरी में तुम्हें सुरक्षित रखते हैं पर मेरा कोई भी स्पर्श करना पसन्द नहीं करता। यदि भूल से स्पर्श हो भी जाए तो साबुन से वस्त्र और हाथ साफ करते हैं । प्रज्वलित आग में डालकर सदासदा के लिए मेरा अन्त कर देते हैं। बताओ भैया ! मेरा ऐसा कौन-सा गुनाह हुआ जिसके कारण लोग मेरे से घृणा करते हैं। हीरे ने मुस्कराते हुए कहा-भैया ! इसका मूल कारण है मैंने उज्ज्वल परमाणु ग्रहण किये थे और तुमने काले परमाणु किये जिससे मेरा सन्मान है और तुम्हारा अपमान है । हीरे और कोयले के संवाद को सुनकर मैं चिन्तन के सागर में डुबकी लगाने लगी । विश्व के सभी प्राणियों की यही स्थिति है। पाप अशुभ परमाणु है और पुण्य शुभ परमाणु है । अशुभ परमाणुओं को ग्रहण करने वाला आत्मा सदा अनादर को प्राप्त होता है और शुभ परमाणुओं को ग्रहण करने वाला आत्मा सर्वत्र आदर प्राप्त करता है । -महासती श्री कुसुमवतीजी 00 Ox0 ( ४३६ ) साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Poraivate spersonalysoonly www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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