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________________ ई० में हुई संसार भर के बड़े-बड़े डाक्टरों की सभा में स्वीकृत हुए इस प्रस्ताव को उद्धत करते हैं कि - " नवयुवकों को यह शिक्षा देनी चाहिए कि ब्रह्मचर्य के पालन से उनके स्वास्थ्य को कोई हानि नहीं पहुँच सकती वरन् वैद्यक और शरीर शास्त्र की दृष्टि से तो ब्रह्मचर्य एक ऐसी वस्तु है, जिसका बड़ी प्रवलता से समर्थन किया जाना चाहिये ।"1 नूतन जीव शास्त्र के प्रसिद्ध लेखक डॉन काउएन एम. डी. कहते हैं- "ब्रह्मचारी को कभी ज्ञात ही नहीं होता कि व्याधिग्रस्त दिवस कैसा होता है । उसकी पाचन शक्ति सदैव नियमित होती है । उसकी वृद्धावस्था बाल्यावस्था जैसी ही आनन्दमयी होती है ।" डा० जटाशंकर स्वानुभव के आधार पर कहते हैं---" जिन रोगियों ने चिकित्सा के दौरान ब्रह्मचर्य पालन किया था, वे शीघ्र ही रोग मुक्त हो गये थे, और उनके रोग जनित कष्ट दायक चिन्ह अल्प कष्ट दायक हो गए थे ।" ब्रह्मचर्य पथ को अपनाये बिना कोई भी व्यक्ति अपने उत्कर्ष, जीवन की महत्ता एवं सुख शांति को प्राप्त नहीं कर सकता | ५. परिग्रह मर्यादा व्रत - धन, धान्य, भूमि, घर, पशु, नौकर चाकर आदि अनेक वस्तुएँ जगत में विद्यमान हैं। उनकी मर्यादा सीमा बाँधना परिग्रह परिमाण व्रत कहलाता है । तृष्णा को जीतने के लिए यह व्रत अति ही उपयोगी है । तृष्णा छिन्धि भज क्षमां जहि मदम् इत्यादि - तृष्णा को काट डाल, क्षमा धारण कर, भद त्याग । तृष्णा को काट डालने के लिये परिग्रह की मर्यादा का व्रत उपयोगी है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के नाते अन्त तक वह संसार के काम-क्रोध, लोभ, मद, मोह तथा मत्सर रूपी षड्रिपुओं से घिरा रहता है और घिरे हुये हो मौत के मुख में चला जाता है। आयुर्विज्ञान कहता है यदि मानव को स्वस्थ रह कर आत्मिक शांति प्राप्त करनी है तो तृष्णा को त्याग कर परिग्रह - मर्यादा व्रत का पालन करना चाहिये । तृष्णा का निरोध भी सन्तोष प्राप्ति का द्वार है । और संतोष प्राप्ति के मन्दिर में प्रवेश करने पर ही परार्थ साधना करने की तत्परता मनुष्य में आती है । पाश्चात्य वैज्ञानिक श्री कूपर का कथन है कि It is content of heart Jain Education Internationa gives nature power to please The mind that feels no smart En-livens all it-sees. अर्थात् - जो हृदय संतुष्ट है, वह प्रकृति में आनन्द देखता है और जो मन चंचलता असंतुष्टता से रहित है । उसे सर्वत्र आनन्द का ही प्रकाश दृष्टि गोचर होता है । 3 परोपकार करने की इच्छा वाले और अपना जीवन सुख सन्तोष से व्यतीत करने तथा चित्त की निवृत्ति का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की कामना वाले मनुष्य को अपने सब संयोगों पर विचार करके अनेक प्रकार के परिग्रहों की मर्यादा निर्धारित करना उचित है । ( ६-७ ) दिशाओं और भोग्य वस्तुओं की मर्यादा निर्धारित करने के व्रत -- पूर्व और पश्चिम आदि दिशाओं का मान करने से सुख देने वाला छठा व्रत निष्पन्न होता है और भोग के साधन वस्त्राभूषण, खान-पान, औषधि आदि की मर्यादा निर्धारित करने से सातवाँ व्रत सिद्ध होता है । लकड़ियाँ जलाकर कोयले बनाना, वनों को कटवाना आदि प्रत्येक पापजनक कर्मादान रूपी कहे जाने वाले पंद्रह उद्धृत १ ब्रह्मचर्य विज्ञान - ले. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी. पू. २२-२३ से २ वही पृ. ४३ ३ कर्तव्य कौमुदी खण्ड १-२ पृ. ६१. पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास साध्वीरत्न ग्रन्थ For Private & Personal Use Only ४१६ www.jainendrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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