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________________ तोतकशन सज्जन परितुछ गुन करै, मानै गिर गुन भाय। भूख-अध्यात्मसाधना, सदाचार, कुलमर्यादा तातै सज्जन पुरुष सब, कलप ब्रष सम थाय। का पालन भूख की स्थिति में नहीं हो सकता, अतः 1 सामाजिक व्यवहार-पारस्परिक मेलजोल से अच्छे समाज के निर्माण की भावना रखने वाले रहने व एक-दूसरे का सम्मान करने से ही अच्छे राष्ट्र-निर्माताओं को सबको 'रोटी' की व्यवस्था समाज का निर्माण होता है। नीतिकार बुधजन ने करनी चाहिए । 'मनमोहन पंच शती' के रचनापारस्परिक व्यवहार में उत्तम शिष्टाचार की अपेक्षा कार छत्रशेष का की है तन लोनि रूप हरे, थूल तन कृश करै, आवत उठि आदर करै, बोले मीठे बैन । मन उत्साह हरै, बल छीन करता । जात हिलमिल बैठना जिय पावे अति चैन ।१४८॥ छिमा को मरोरै गही, दिढ़ मरजाद तोरै, र भला बुरा लखिये नहीं, आये अपने द्वार । सुअज सहेन भेद करै लाज हरता। जस लीजिए, नातर अजस तैयार ।१४६। धरम प्रवृत्ति जप तप ध्यान नास करै, समाज में व्यवहार करते समय अधिक सरलता धीरज विवेक हरै करति अथिरता। ॥ की अपेक्षा थोड़ी चतुराई का भाव रखना चाहिए- कहा कुलकानि कहा राज पावे गुरु, अधिक सरलता सुखद नहीं, देखो विपिन निहार । आन क्षुधा बस होय जीव बहुदोष करता। सीधे विरवा कटि गये, बांके खरे हजार ।।१६।। रोजगार-बेरोजगारी का कष्ट आज ही नहीं, -बुधजन सतसई मध्यकाल से ही व्यक्ति अनुभव करता रहा है। नारी-काम की प्रबलता के विरोध के कारण रोजगार से ही व्यक्ति को समाज और परिवार में मध्यकालीन काल में नारी के प्रति कटुक्तियाँ प्रतिष्ठा मिलती है। म अधिक कह दी गई हैं, जिससे नारी की गरिमा रोजगार बिना यार, यार सों न करै बात, को हानि हुई है। 'राजमती' और 'चन्दनबाला' रोजगार बिन नारि नाहर ज्यों धूरि है। के आदर्श चरित्र प्रस्तुत करने वाले जैन काव्य में रोजगार बिना सब गुन तो बिलाय जाय, कटूक्तियाँ अपेक्षाकृत कम हैं । नारी का एक सुखद एक रोजगार सब, औगुन को चूर है । चित्र जैन कवि साधुराम ने इस प्रकार प्रस्तुत रोजगार बिना कछू बात बनि आवै नहीं, किया है बिना दाम आठौ जाम, बैठा धाम झूर है। नारी बिना घर में नर भूत सो, रोजगार बिना नांहि रोजगार पांहि, नारी सब घर की रखवारी। असो रोजगार येक धर्म नारि चषावत है षट् भोजन, निर्धनता का एक भयावह चित्र मनोहरदास ने PM नारि दिखावत है सुख भारी। भी प्रस्तुत किया हैनारी सिव रमणी सुष कारण, भूष बुरी संसार, भूष सबही गुन मोवै । पुत्र उपावन कू परवारी। भूष बुरी संसार, भूष सबको मुष जोवै । और कहाय कहा लूं कहूँ तब, भूष बुरी संसार, भूष आदर नहीं पावै । साष बड़ी मन रंजनहारो। भूष बुरी संसार, भूष कुल कान घटावै । आर्थिक नीति-भूख, रोजगार, निर्धनता, धन भूष गंवावै लाज, भूष न राषै कारमें । के उपयोग सम्बन्धी उक्तियाँ आर्थिक नीति का मन रहसि मनोहर हम कहें, अंग हैं। भूष बुरी संसार में ॥११॥ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास ४११ Hd साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International From Private Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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