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________________ 0 मान द्रव्य के रूप में स्वीकार किया गया है जीवन अपार है । परा-मनोविज्ञान और पराशोध उन्हीं आत्मा का परिणमन ही है इसमें पुरुषार्थ एवं क्षयो- विषयों को खोलने का प्रयत्न कर रहा है। पशम की विचित्रता से अनेकानेक आश्चर्यजनक आशा है वैज्ञानिकों का यह प्रयास भविष्य में | परिणाम भी होते रहते हैं । वे परिणमन आत्म- जीवन के ऐसे अद्भुत किन्तु परम सत्य तथ्य प्रकाश शक्ति के उद्भव-पराभव के परिणामस्वरूप हैं। में ला सकेगा जो प्रत्येक जीवन में शाश्वत स्वधर्म जीवन का व्यक्त अंश अत्यन्त अल्प है अव्यक्त तो रूप निर्बाध रूप से स्थित हैं। 00000000000000000000000000006 (शेष पृष्ठ ३७७ का) तुलना की जाए तो संभव है हम इन स्थलों की चित्रण किया है, साथ ही सांस्कृतिक परम्पराओं ME पहचान कर सकते हैं। इसी प्रकार और स्थलों का भी मूल्यांकन किया है। इन सारे सन्दर्भो को की भी तुलना करना उपयोगी होगा। यदि वैज्ञानिक रीति से संकलित किया जाए तो 12 ___ इस प्रकार जैन भूगोल को आधुनिक भूगोल के निश्चित हो व्यावहारिक भूगोल की सुन्दर रूपरेखा व्यावहारिक पक्ष के साथ रखकर हम यह निष्कर्ष हमारे समक्ष प्रस्तुत हो सकती है। यहाँ शोधकों निकाल सकते हैं कि जैन भूगोल का समूचा पक्ष को भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ कोरा बकवास नहीं है। उसके पारिभाषिक शब्दों सकता है। कवियों ने राजाओं, नदियों, पर्वतों और को आधुनिक सन्दर्भो के साथ यदि मिलाकर समझने नगरों आदि के अभिस्रोतों का भी अनुवाद कर की कोशिश की जाए तो संभव है कि हम काफी दिया है, जिससे उनके यथार्थ नामों का पता करना । सीमा तक जन भौगोलिक परम्परा को आत्मसात् दुष्कर हो गया है । इसी तरह संख्या आदि के समय कर सकेंगे। अतिशयोक्ति का उपयोग किया जाता है जिससे ___इस सन्दर्भ में यह दृष्टव्य है कि जैनाचार्यों ने साधारण पाठकों का विश्वास डगमगाने लगता भूगोल को इतना प्रमुख विषय नहीं बनाया। परन्तु है। इन सारे सन्दर्भो का समाधान खोजते हुए देश, नगर, पर्वत आदि का वर्णन करते हुए समय, व्यावहारिक भूगोल की संरचना की जाना आवजलवायु, आकृति आदि का वर्णन अवश्य किया है। श्यक है। उन्होंने कृषि, उद्योग, व्यापार आदि का भी सुन्दर ___-न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर । 8 पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6. 00 Jain Education International Por Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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