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________________ गौतम ! ज्ञान इहभविक भी हैं परभविक भा हैं देख सकते हैं । ऐसा संसूचन उपर्युक्त सूत्र से उपऔर तदभयभविक भी हैं ? लब्ध हैं। ___इस सूत्र से परभविक ज्ञान के अस्तित्व की पराशक्तियाँ स्पष्ट स्वीकृति है। परभविक ज्ञान उसे कहते हैं एक प्रश्न के उत्तर में यह भी स्पष्ट हआ कि जो मृत्यु के बाद नये जीवन में भी साथ रहे। तप संयम के साधक मुनि अपूर्व बलशाली और शक्ति इससे एक जन्म में पूर्वजन्मों की स्मृति होना सिद्ध सम्पन्न हो जाते हैं, वे बाह्य अण परमाणओं को होता है। ग्रहण कर न केवल अपने अनेक रूप बना सकते हैं भविष्य की बात जान लेना अपितु वे दुर्लध्य पर्वतों को भी लांघ जाते हैं ऐसा २-भगवान महावीर गौतम को कहते हैं । वे वैक्रिय नामक पराशक्ति से करते हैं। गौतम ! आज तुम अपने पूर्वभव के साथी से वैक्रिय नामक पराशक्ति से सम्पन्न मुनि के द्वारा मिलोगे? ऐसे और भी अनेक विलक्षण कार्य सम्पन्न हो सकने भगवान ! मैं आज किस साथी से मिलूंगा? के उल्लेख इसी क्रम में उपलब्ध होते हैं। भगवान ने कहा-तु स्कंद परिव्राजक से मिलेगा। माय और समाधान फिर गौतम पूछते हैं कि क्या वह आपके पास दो देवों ने मन में ही भ. महावीर को प्रश्न दीक्षित होगा? किया कि आपके कितने मुनि सिद्ध होंगे। भ. महाभगवान महावीर ने इसका उत्तर स्वीकृति में वीर ने उस मानस प्रश्न का मानस उत्तर देते हये दिया । कहा-मेरे ७०० शिष्य सिद्ध होंगे। परोक्ष को प्रत्यक्ष जानना-देखना __ ये मानसिक प्रश्नोत्तर मन की अद्भुत निर्ग्रन्थ मुनि के एकाग्रतापूर्वक ज्ञान करने के विशेषताओं का परिचय देते हैं। एक प्रश्न के उत्तर में भ. महावीर ने कहा कि कभी पुनर्जन्म का स्मरण वह वृक्ष के बाह्य को ज्ञात कर लेता है, देखता है श्रावक सुदर्शन को भ. महावीर ने धर्मोपदेश ! किन्तु अन्तर को न ज्ञात कर पाता है और न देख दिया उसे श्रवण कर वह अत्यन्त हर्षित हुआ तथा पाता है। कभी बाह्य को ज्ञात नहीं कर पाता किन्त पवित्र अध्यवसाययुक्त हआ तभी उसे "सण्णी पुव्व || अन्तर् को ज्ञात भी कर लेता है और देख भी लेता जाईसरणो समुप्पन्ने" अर्थात् अपने पूर्व संज्ञी जन्म को स्मृत करने वाला ज्ञान उत्पन्न हुआ। ____ कभी ऐसा होता है कि न बाह्य और न अन्तर सुदर्शन गृहस्थ मानव था फिर भी उसको अपने | 3 को ज्ञात कर पाता है, न देख ही पाता है किन्तु कभी अध्यवसाय के निरन्तर विकास से पूर्व-जन्म की दोनों को देख भी लेता है और जान भी लेता है। स्मृति हो गई यह एक महत्वपूर्ण बात है। तप आदि विशिष्ट साधना करने वाले मुनि को पूर्व-जन्म के अनेक उदाहरण गत कुछ वर्षों में ||5 कुछ ऐसी परामानस शक्तियाँ उपलब्ध हो जाती हैं प्राप्त हुए उनका वैज्ञानिक प्रविधियों से अंकन भी का कि वे मुनि उनसे परोक्ष वस्तु को प्रत्यक्ष जान व हुआ किन्तु इस प्रश्न की चुनौती अभी तक ज्यों की LAS १. भगवती सूत्र शतक १ उद्देशक सूत्र क्रम ५४ ३. भगवती सूत्र शतक ३ उद्देशक ४ , ५. भगवती सूत्र शतक ५ उद्देशक ४ २. भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक १ ४. भगवती सूत्र शतक ३ उद्देशक ५ ३७६ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 50 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For private e. Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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