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________________ FOROSCORReOQROcreDQROgreDeOpedia डॉ० रुद्रदेव त्रिपाठी एम० ए०, पी-एच० डी० डी० लिट० उज्जैन (म० प्र०) जैन-स्तोत्र-साहित्य के सन्दर्भ में । आकार-चित्ररूप स्तोत्रों का संक्षिप्त निदर्शन - स्तोत्र-रचना का प्रमुख उद्देश्य बनता है । इष्टदेव का नाम-स्मरण और उसके मा विश्व-साहित्य की सृष्टि का मूल स्तुति-स्तोत्रों गुण र गुणों का कथन किसी भी रूप में किया जाये, वह IK Rमें निहित है। यह रचना मानव के जन्म से मरण- 'स्तोत्र' ही है। 18 ' और पर्यन्त ही नहीं, अपितु मरणोत्तर की कामनाओं स्तोत्र की काव्यात्मकता को भी अपने में समेटे हई है। इस दृष्टि से मम्मट काव्य-स्वरूप निर्धारण में रचना की 'बन्धके काव्य-लक्षण में प्रयुक्त 'शिवेतर-क्षति' पद स्तोत्र- सापेक्षता और बन्ध-निरपेक्षता' दोनों ही महत्वपूर्ण रचना के प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति करता है । संसार रीढ हैं । इसके साथ ही उक्ति-वैशिष्ट्य जब इसमें 12 की विचित्र गतिविधि के समक्ष मानव अपनी प्रविष्ट होता है तो वह काव्यात्मक स्वरूप को प्राप्त विह्वलताओं से छुटकारा पाने के लिए अपने इष्ट हो जाती है। स्तोत्र में रमविशेष का समावेश के प्रति जो काव्यमयी वाणी में कथन करता है, सहज होता है। कथा की अथवा कथन को पर वही 'स्तुति' अथवा 'स्तोत्र' कहलाता है। इनमें स्पर-सापेक्षता अपेक्षित नहीं होती। अतः . 'सुख की आकांक्षा, कृपा की कामना, अपेक्षित की प्रार्थना, स्तोत्र को 'मुक्तकों का समूह' भी कहा जाता है । | उपेक्षणीय की निवृत्ति' आदि भावनाओं का प्रकटन बन्ध की सापेक्षता स्तोत्र के क्षेत्र में उतनी महत्वall होता है और सबके मूल में रहती है "इष्ट की पूर्ण नहीं मानी गई है और वह सम्भव भी नहीं है। प्रशंसा ।"-कृतज्ञता-ज्ञापन तथा आत्मनिवेदनरूपी होती । क्योंकि स्तोत्र में आने वाले पद्यों में से एक । दो तटों के मध्य बहती हुई स्तोत्र-सरिता में पद्य भी अपने आप में परिपूर्ण भावों को व्यक्त कर स्तोतव्य के प्रशंसनीय गुणों का आख्यान ही स्तोत्र देता है। इतना होने पर भी स्तोत्र की काव्यात्म १ काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये । सद्यः परनिवतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ॥ -काव्यप्रकाश, १-१ १२ गुणकथनं हि स्तुतित्वं, गुणानामसद्भावे स्तुतित्वमेव हीयते । -शास्त्रमुक्तावली, पू. नी. १-२-७ । १ ३ प्रतिगीत-मन्त्रसाध्यं स्तोत्रम् । छन्दोबद्धस्वरूपं गूणकीर्तनं वा । -ललिता सहस्रनाम, सौभाग्यभास्करभाष्य, पृ. १८८ । ३६१ । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 260 r Private & Personal Use Only www.janeuvery.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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