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________________ आशीर्वचन स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ भारतवर्ष में अपना विशिष्ट स्थान रखता है । इस श्रमण संघ में उच्चकोटि के साधक, तपस्वी, चिंतक, मनीषी, प्रखर प्रवचनकार, समाजसुधारक, श्रेष्ठ कवि जैसे अनेक सन्तगण विद्यमान हैं । इसी के अनुरूप श्रमणी सघ भी है । श्रमणी संघ में भी अनेक साध्वियां उच्चकोटि की प्रवचनकर्त्री, ज्ञानाराधक, कवयित्री, साधिका, संगठिका, विदुषी, तपस्विनी आदि हैं । अतीत का इतिहास भी यदि उठाकर देखें तो हमें एक से बढ़कर एक उच्चकोटि की महासतियों का परिचय मिलता है और जिन्होंने जैन इतिहास के पृष्ठों को गरिमा प्रदान की है । वर्तमान समय में भी हमारे श्रमण संघ में अनेक ऐसी महासतियाँ हैं जो आपने ज्ञान, ध्यान, संयमपालन आदि के माध्यम से जैन धर्म की अच्छी प्रभावना कर रही हैं । ऐसी संयमाराधिका महासतियों पर मुझे गौरव की अनुभूति भी होती है । ऐसी ही परम विदुषी महासतियों में महासनी श्री कुसुमवती जी का नाम बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । मुझे स्मरण आता है कि जिस समय मेरा ब्यावर में चातुर्मास था तब महासती श्री कुसुमवती जी प्रवचन सुनने तो आती ही रहती थीं, दिन में दर्शन करने और अपनी जिज्ञासा लेकर भी उपस्थित होती थीं। मैं उनकी जिज्ञासा तो शान्त करता ही था, साथ ही उनसे जैनधर्म, दर्शन, साहित्य विषयक प्रश्न भी करता था । कभी- कभी व्याकरण विषयक प्रश्न करता था । उनकी उत्तर देने की शैली प्रभावपूर्ण होती थी । प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना Education Internatio साधनाशील श्रमणी - आचार्यश्री आनन्द ऋषिजी म० उससे उनकी मेधाशक्ति, प्रत्युत्पन्नमति और प्रतिभा का पता चलता है । उस समय जब स्त्री-शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं था, तब महासती न केवल संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं वरन् कई परीक्षायें भी उत्तीर्ण कर ली थीं। इससे महासतीजी की अध्ययन के प्रति रुचि प्रकट होती है । वि० सं० २००६ में सोजत (मारवाड़) में एक साधु सम्मेलन हुआ था । उस सम्मेलन में तथा राजस्थान विहरण के समय संवत २०२८ में भीलवाड़ा शहर में भी महासती श्री कुसुमवतीजी को देखने का अवसर मिला था । वे एक साधनाशील श्रमणी हैं । मुझे यह भी विदित है कि महासती श्री कुसुमवतीजी ने दूरस्थ एवं दुर्गम प्रदेशों जैसे जम्मूकश्मीर तक विहार कर धर्म प्रचार किया है । उनका विहार क्षेत्र भी विस्तृत रहा है और हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है । यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि महासती श्री कुसुमवतीजी के दोक्षा स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन कर उनकी सेवा में अर्पित किया जा रहा है । मैं इस अभिनन्दन ग्रन्थ के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ और अन्तर्मन से शुभाशीर्वाद प्रदान करता हूँ कि महासती श्री कुसुमवतीजी म० सदैव स्वस्थ और प्रसन्न रहते हुए जैनधर्म की प्रभावना करती रहें । साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Private & Personal Use Only www.jainelibrary
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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