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________________ eHAR GY महाभारत, धर्मशास्त्र आदि सब अहिंसा को किसी मय, इसी की साक्षी देता है। भारतीय संस्कृति की न किसी प्रकार मनुष्यजीवन का प्राण तत्व गिनते नैतिकता धर्म पर सर्वाश्रित है। महावीर का तो 12 हैं, ‘मा हिंस्यात् सर्व भूतानि' । अहिंसा का नैतिक जीवन ही इसका दिव्य संदेश है। इतिहास में राज्य ही सर्वोत्तम है । छांदोग्य उपनिषद कहता है महावीर (और बुद्ध) शाश्वत ज्योतिष्पुज हैं, जो कि यज्ञों में बलि नैतिक गुणों की ही देनी चाहिए मानवजीवन के अन्तर्बाह्य अन्धकार को अहिंसा 'अथयत् तपोदानं आर्जवं, अहिंसा, सत्यवचनं इतिता व करुणा से, अपरिग्रह व मैत्री-भावना से दूर कर | अस्य दक्षिणाः' - (३-१७)-आरुणिकोपनिषद सदा-सदा आलोक विकीर्ण करते रहेंगे। महावीर शाण्डिल्योपनिषद ने भी यही माना। का जीवन, व्यक्तित्व और कर्तुत्व ही इसका उदा हरण है। कितने परीषह और उपसर्ग आये, कितनी ब्रह्मचर्यमहिंसा चापरिग्रहं च सत्य च यत्नेनहे चुनौतियाँ उन्होंने झेली, कितनी उपेक्षाएँ सही, पर रक्षतो हे, रक्षतो हे, रक्षत इति (आरुणिको- वह-'आलोक पुरुष मंगल-चेतन' शान्त, स्थिर 10 पनिषद-३) और दृढ़ निश्चय से अहिंसा द्वारा मनोगत अन्धकार | को विनष्ट कर हमें ज्योतिर्मय कर गया। आभ्यमनु जैसे आचार्यों ने 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' कहकर भी यह कहा 'अहिंसयेव न्तर व बाह्य दासत्व से उसने हमें मुक्ति दी। भूतानां कार्य श्रेयोऽनुशासनम्' (३-१५६) महाभारत 'सत्वापि सार्मथ्ये अपकार सहनं क्षमा' की वे मूर्ति की तो स्पस्ट घोषणा रही- अहिंसा सकलोधर्मो थे। हिंसा धर्मस्तथाहितः' (शान्ति पर्व २७२---२०) रवीन्द्रनाथ ठाकुर के अनुसार 'यदि तौर डाक अनुशासन और शान्ति पर्व इसी अहिंसक समाज की शुनै कोई न आशे, तबै एकला चलो रे'-वे अकेले संकल्पना करते हैं---'अहिंसा परमोधर्मः अहिंसा ही यात्रा करते रहे-निर्भय और निःशंक होकर । परमं तपः, अहिंसा परमं सत्यं ततो धर्म प्रवर्तते'- अपरिचितों से न भय था और न परिचितों में आदि । महाभारत के अन्त में महर्षि व्यास तक को आसक्ति । उनका जीवन पराक्रम, पुरुषार्थ और UNE कहना पड़ा कि 'परोपकार पुण्याय पापाय परपीड़- परमार्थ से सम्पूर्ण था। संकीर्ण मनोवृत्ति का उन्होंने एक नम् ।' पद्मपुराण कहता है त्याग किया। चंडकौशिक हो या संगम, यक्ष या (EP ___ "अहिंसा प्रथमं पुष्पं पुष्पं इन्द्रिय निग्रहः । सर्व कटूपतना, गौशालक हो या इन्द्रभूति गौतम सबके प्रति वही समभाव, वही सद्भाव । क्रोध, मान, भूत दया पुष्पं, क्षमा पुष्पं विशेषतः ।' महाभारत लोभ, मोह कहाँ गये थे कषाय । समाप्त हो गये । में राजविचक्षण , वृहद् धर्म पुराण में परशुराम महावीर का जीवन ही उनकी साधना का रहस्य और शिव का संवाद इसके प्रमाण हैं। है, अहिंसा की मंजूषा है। उन्होंने बताया कि __ वायु पुराण का यह कथन पर्याप्त है--'अहिंसा अहिंसा का दर्शन सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान सर्वभूतानां कर्मणा मनसा गिरा।' विष्णु पुराण में है। हिंसा के पारिवारिक रूप की चर्चा की गई है। आज जब पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, प्राकृ- 102 अनृत, निकृति, भय, नरक, सन्तान, माया, वेदना, तिक संतुलन बिगड़ रहा है, पशु-पक्षी, जन्तु मनुष्य व्याधि, जरा, शोक, तृष्णा, क्रोध उसकी परम्परा की हिंसक वृत्ति से समाप्त हो रहे हैं, महावीर ने है। इसके विपरीत अहिंसा के लिए ब्रह्म पुराण आचार-विचार और व्यवहार के साथ-साथ आहार स्पष्ट कहता है 'सर्व भूतदयावन्तो विश्वास्याः का शाकाहार का भी प्रमाण दिया-वे केवली थेसर्वजन्तुषु' । पुराण ही क्यों,समस्त भारतीय वाङ - त्रिकालज्ञ, दिव्य । हिंसा पाप है, रोद्र है, भय है, चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ १ Jain Education International Orprivateersonalisa.only www.jainenorary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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