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________________ समक्ष दो ही विकल्प हैं-या तो परम्परा से प्राप्त हीन अधिग्रहण और अवाप्ति की लालसा ने उसकी ! नतिक व्यवस्था स्वीकार करें या फिर समाज से स्वस्थ मानसिकता नष्ट कर दी है। हिगेल के शब्दों 12 निःसृत उसकी प्रायोगिक मान्यता को । परन्तु यहीं में 'मनुष्य सबसे सौभाग्यपूर्ण प्राणी है क्योंकि वह प्रश्न उठता है कि, वर्तमान अनैतिक समाज से अकेला (रोबिनसन क्रू सो की भाँति) नहीं रह 0 हम किस प्रकार नैतिक व्यवस्था प्राप्त कर सकते सकता, पर वह सबसे अभागा भी है क्योंकि अन्य हैं ? सत्ता और व्यवस्था की संकल्पना लोकोत्तर मनुष्यों के साथ सौमनस्य और प्रेम से भी नहीं ४ होनी चाहिए, जो विद्यमान परिस्थितियों से उत्पन्न रहता'- अर्थात् सामाजिकता की प्रकृत आकांक्षा के प्रत्ययात्मक और पारम्परिक हो ।" डा. राधा- साथ ही उसमें विकृत असामाजिकता है। कृष्णन के शब्दों में 'अहिंसा कोई शारीरिक दशा वह प्रकृति के सनातन नियमों को भूल गया नहीं है, अपितु यह तो मन की प्रेममयी वृत्ति है।' है। आर्थिक व राजनैतिक जीवन की केन्द्रस्थ मानसिक स्थिति के रूप में अहिंसा केवल अप्रति- यान्त्रिकता में, वह व्यक्तित्व की स्वतन्त्रता खी रोध से भी भिन्न है। वह जीवन का एक समर्थ बैठा । उसके दिल और दिमाग पर शासन तन्त्र रचनात्मक पक्ष है । मानव कल्याण की भावना ही की क्रूरता और निरंकुशता हावी है। समाजसच्चा बल और सर्वश्रेष्ठ गुण है। वाल्मीकि कहते शास्त्रियों ने व्यक्ति की इस विकृत मानसिकता का हैं- “योद्धा का बल घृणित है, ऋषि का बल ही विशद् विवेचन किया है। सामाजिक, आर्थिक सच्ची शक्ति है-धिग्बलम क्षत्रिय बलम, ब्रह्म तेजो- दृष्टि से एक ओर वह अतीव परिग्रहवादी है, बलं बलम् ।" अहिंसक मनि, ऋषि या संन्यासी दूसरी ओर वह वर्तमान संस्कृति की जड़ता से प्रत्यक्षतः सामाजिक संघर्ष में भाग नहीं लेते पर विच्छिन्न । इसी को समाजशास्त्र में 'एनोमो' और उनका योगदान निविवाद है। 'ऐलिनेशन' कहा गया है। मार्क्स ने अपने सिद्धांतों में भिन्न दृष्टि से व्यक्ति के ऐलिनेशन पर विचार पुनः डा. राधाकृष्णन के अनुसार वे “सामा- किया। एलिनेशन की विवेचना करते हुए गर्सन | जिक आन्दोलन के सच्चे निदेशक हैं। उन्हें देख का मत है कि तकनीकी-औद्योगिक क्रान्ति, ISI कर हमें अरस्तू की 'गतिहीन प्रेरक शक्ति' का नौकरशाही, विलास वैभवपूर्ण जीवन प्रक्रिया, स्मरण हो जाता है।" ताल्सताय ने अपने प्रसिद्ध प्रसिद्ध आदर्शों का लोप, नैतिक मूल्यों का ह्रास, विकृत उपन्यास 'युद्ध और शान्ति' में लिखा है-"युद्ध मनोविज्ञान (फ्राइड आदि का) इस मानसिक एक सामूहिक हत्या है, जिसके उपकरण हैं, देश विच्छति के कारण हैं। इसका अर्थ है कि आज द्रोह को प्रोत्साहन, मिथ्याभाषण, निवासियों का व्यक्ति एकाकीपन, अनैक्य, असन्तोष का शिकार | विनाश आदि ।" होकर वह अपने वृहत् सामाजिक सम्बन्धों को पहले हम अहिंसा द्वारा सामाजिक परिवर्तन विस्मृत कर रहा है। उसे न तो अपने से सन्तोष है की सम्भावनाओं पर विचार करें। एरिक फ्रोम के और न अपनी उपार्जन क्षमता से । वह असंयत अनुसार आज साधन को ही साध्य समझना सामा- है। सांस्कृतिक संकट उसे हतप्रम कर रहा है जिक व्यवस्था की सबसे बड़ी विसंगति है । भौतिक उसकी आकांक्षाओं और उपलब्धियों में प्रचुर 4 समृद्धि के लिए उत्पादन और उपभोग के साधन व्यवधान है। उसकी एषणाओं का अन्त नहीं। हमारे साध्य बन गए हैं इसी से आज सम्पूर्ण समाज वह अर्थरहित, मूल्यविहीन, एकाकी, आत्मअपने आदर्श और उद्देश्य से च्युत हो गया है। निर्वासित और शक्तिहीन है । यही उसका सांस्कृमनुष्य मनुष्य से भयभीत है । उसकी वैयक्तिक अन्त- तिक विघटन है। आज यह आत्मविमुखता और ३४५ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ७ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jaineniorary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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