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________________ 35 जैन शिक्षा के उद्देश्य ही रह गया है। वह शिक्षा जो मानव को मानव प्राचीनकाल में बालकों का पूर्ण शिक्षा-क्रम ही नहीं अपितु मुक्त बनाने वाली थी, जो दुःखों से चरित्र शुद्धि पर आधारित था। काय-मन और मुक्तकर शाश्वत सुख प्रदान करने वाली थी, आज वचन शुद्धि पर विशेष बल दिया जाता था। केवल धन और आजीविका का एकमात्र साधन आचार-व्यवहार की शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक, रह गया है । इस यान्त्रिक युग में शिक्षा भी यान्त्रिक मानसिक, शारीरिक एवं आत्मिक विकास की भी हो गयी है। जिस प्रकार यन्त्र बिना सोचे-समझें शिक्षा दी जाती थी । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मा- अपना कार्य करता रहता है उसी प्रकार वर्तमान चयं आदि ज्ञानार्जन के मुख्य अंग थे। प्राचीन युग का विद्यार्थी भी किताबों को अक्षरशः रटकर भारतीय शिक्षा पद्धति का उद्देश्य ही था-चरित्र डिग्री हासिल कर नौकरी प्राप्त करना ही शिक्षा का संगठन, व्यक्तित्व का निर्माण, संस्कृति की का उद्देश्य मान बैठा है । यह भूल न तो विद्याथियों रक्षा तथा सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों को की है और न शिक्षकों की ही बल्कि गलती उस सम्पन्न करने के लिए उदीयमान पीढ़ी का प्रशि- समाज को है जिसने शिक्षा से ज्यादा धन को क्षण । महत्व दे रखा है। आज जो शिक्षा समाज में दी जा रही है वह विद्यार्थी को डॉक्टर, इंजीनियर जैन शिक्षा का लक्ष्य बताते हुए डॉ० नेमिचन्द्र EV शास्त्री ने कहा है-आन्तरिक दैवी शक्तियों की आदि बनाने में तो सक्षम है परन्तु मानव को सच्चा इन्सान नहीं बना पा रही है। क्योंकि शिक्षा के र अभिव्यक्ति करना, अन्तनिहित महनीय गुणों का साथ सेवा और श्रम का भाव व्यक्ति के मन में विकास करना तथा शरीर, मन और आत्मा को सबल बनाना, जगत् और जीवन के सम्बन्धों का बोलबाला है। स्वार्थपति के लिए भयंकर से भयं उत्पन्न नहीं हो रहा है। चारों ओर स्वार्थता का ज्ञान, आचार, दर्शन और विज्ञान की उपलब्धि , __ कर पाप किये जा रहे हैं। परिणामतः मनुष्य की करना, प्रसुप्त शक्तियों का उद्बोधन, अनेकान्ता नैतिकता गिरती जा रही है। त्मक दृष्टिकोण से भावात्मक अहिंसा की प्राप्ति, ऐसी स्थिति में हमारी केन्द्रीय सरकार ने नई कर्तव्य पालन के प्रति जागरूकता का बोध तथा शिक्षा नीति (१०+२३) निर्धारित किया है विवेक दृष्टि की प्राप्ति आदि जैन शिक्षा के उद्देश्य जिसका मुख्य उद्देश्य सवको नये रोजगार के अवहैं।' अभिप्राय यह है कि जैन शिक्षा शास्त्र के सर प्रदान करना तथा देश को इक्कीसवीं सदी के अन्तर्गत आत्मसाक्षात्कार, सत्य की खोज, चरित्र मध्य संसार के अन्य देशों के समकक्ष खडा करना निर्माण, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण, सामा है। इस नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत त्रिभाषा जिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना आदि फार्मूला पारित किया गया है-(क) राष्ट्रभाषा शिक्षा के उद्देश्य समझे जाते थे। हिन्दी, (ख) विदेशी भाषा, (ग) प्रादेशिक भाषा । आधुनिक शिक्षा के उद्देश्य इस त्रिभाषा फार्मूला में संस्कृत, प्राकृत और आज की शिक्षा का उद्देश्य मात्र धनोपार्जन पालि को कोई स्थान नहीं दिया गया है । परिणा १. Infusion of spirit of a piety and religiousness, formation of character, developinent of personality, inculcation of civic and social duties, promotion of scial efficiency and preservation and spread of national culture may be described as the chief aim and ideal of ancient Indian education. --Altekar, Education in Ancient India, P. 8-9 आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, प० २५६ । ३३५ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 0.038 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ allication Internatione Ser Private & Personal Use Only NISHary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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