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________________ ६. विद्याजीवी, शिक्षाविद्, पत्रकार-सम्पादक- ६. परधनोपजीवी साधु-संन्यासी-मठाधीशप्रकाशक एवं लेखक-आज शिक्षाविद् अपनी उच्च पण्डित एवं धर्म प्रचारक-प्रातः स्मरणीय पूजनीय शिक्षा के बलबूते पर नये-नये हथकंडे खोजने में रत जैन साधु-मुनिगण वास्तव में स्तुत्य हैं क्योंकि वे रहते हैं ताकि उनके पास भी नम्बर दो की आय अन्य मठाधीशों की भाँति किसी प्रकार का कोई का की वर्षा होने लगे और वे भी लखपति बन कारों- परिग्रह नहीं पालते । अस्तेय का पालन कैसा होता बंगलों-कोठियों में ऐश करें। मां शारदा का पुजारी है इनसे सीखा जाना चाहिए। ये जनता को अस्तेय भी लक्ष्मी की शरण में जाकर अपना पवित्र व्यव- की ओर प्रेरित करते हैं। अन्य मतों में भी नागा Hai साय बिसरा-सा रहा है। प्रकाशक-सम्पादकगण परमहंस उच्च कोटि के हैं जो समाज को देते || लेखकों का शोषण करना अपना फर्ज-सा मान बैठे ही देते हैं बदले में तृण की इच्छा भी नहीं | हैं । लेखकगण भी परिश्रम न कर इधर-उधर की रखते । किन्तु इनकी संख्या नगण्य मात्र है। शेष र दो-चार किताबों से सामग्री चुराकर अपना नाम सभी मठाधीश कभी किसी यज्ञ, कभी किसी अनु- ( रोशन करने में लगे हुए हैं। पीत पत्रकारिता पत्र- ष्ठान, कभी किसी मन्दिर का निर्माण आयोजित ६ कारों का दूसरे रास्ते से पैसा ऐंठने का व्यवसाय कर धर्म की आड़ में अपनी रोटियाँ सेकते हैं। बनता जा रहा है। समाज के पैसे पर इनमें कई सुरा और सुन्दरी की ७. श्रमजीवी कृषक और मजदूर-'पैसा पूरा मौज में ऐश कर रहे हैं। न कोई काम, न कोई किन्तु काम नहीं' आज के श्रमिक का नारा है। चिन्ता। पूरी मजदूरी पाकर भी कृषक, खेतिहर मजदूर तथा यद्यपि जितने चोर हैं उतने ही उनके चोरी के अन्य श्रमिकगण काम पूरा करना अपनी जिम्मेदारी ढंग हैं । 'चोर अनन्त चोरी अनन्त' फिर भी सुविधा नहीं समझता। बीड़ी पीना, सुस्ताना, धीमी गति की दृष्टि से समस्त चोर कर्मों को उक्त नवकोटियों पर से कार्य करना इनका शगल बन गया है। श्रम पर में रखा जा सकता है। अस्तेय पलकर भी ये श्रम का मूल्य नहीं आँकते। उचित प्रकार की कोई छूट नहीं है। चार प्रकार की मजदूरी न पाने पर उसके प्रति विद्रोही स्वर उठाने हिंसाओं में से जीवन संरक्षण हेतु कुछ हिंसा तो का साहस इनमें नहीं होता। इसीलिए श्रमिक नेता करनी ही पड़ेगी । 'जीवो जीवस्य भोजनम्'-जीव इनके कन्धे पर बन्दूक रखकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि ही जीव का भोजन है। इस सिद्धान्त के अनुसार की गोली आये दिन दागते रहते हैं। ईमानदार संसार में रहकर मानव ही नहीं प्राणीमात्र पूर्ण तथा हितैषी मालिक, जो आजकल बिरले ही हैं, अहिंसक नहीं बन सकता। जीवन जब दाव पर उनके विरोध में भी ये हडताल का अस्त्र अपना कर लगा हो तो वहाँ असत्य भाषण भी क्षम्य बतलाया B उस उद्योग और उद्योगपति को धराशायी करने का गया है । जीवन-यापन करने के लिए कुछ न कुछ है प्रयास करते हैं। परिग्रह तो पालना ही होगा तथा संतानोत्पत्ति और . लटजीवी, चोर-उच्चक्के, तस्कर एवं संसार चलाने हेतु ब्रह्मचर्य की भी छूट सभी डाकू-इन श्रेणियों के लोग तो घोषित चोर हैं ही। आचार शास्त्रों में दी गयी है। वाल ब्रह्मचारी रह इनमें भी ऊँचे दर्जे के तस्कर और सबाज दिन कर इस कमी को संन्यासीगण पूरा करने का प्रयास के उजाले में भले मानुष तथा रात्रि के अन्धकार करते हैं किन्तु चैल या अचैल (वस्त्रधारी या दिगमें काले कारनामे करते हैं । दिन दूना और रात म्बर) साधुगण भी स्तेय को किसी भी अवस्था में 2 चौगुना धन बटोर कर भी उनकी धनलिप्सा और नहीं अपना सकते । इसी प्रकार गृहस्थगण भी चौर्य हबस नहीं मिटती । (शेष पृष्ठ ३२७ पर) द. ३२२ GooG चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Oost Jain Education International Por private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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