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________________ आपकी आत्मा में अनेक शक्तियाँ हैं। धर्म- और दूसरे साथियों को भी उत्साहित करें, जीवन शास्त्र की भाषा में आत्मा अनन्तशक्तिसम्पन्न है। लक्ष्य को प्राप्य करें, मन की शक्तियों को केन्द्रित और आज के विज्ञान की भाषा में मानव शरीर, करें, आत्मा को बलवान बनायें--'नायमात्मा बलअसीम अगणित शक्तियों का पुंज है। कहते हैं, हीनेन लभ्यः' यह आत्मा या समझिए, संसार का एक पश्चिम के मानस शास्त्रियों ने प्रयोग करके बताया भौतिक व आध्यात्मिक वैभव बलहीन, दुर्बल TH है कि मनुष्य अपनी मस्तिष्क शक्तियों को केन्द्रित व्यक्तियों को प्राप्त नहीं हो सकता, 'वीरभोग्या ICT करके उनसे इतनी ऊर्जा पैदा कर देता है, कि एक वसुन्धरा'- यह रत्नगर्भा पृथ्वी वीरों के लिए ही लम्बी ट्रेन १०० किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से चल जाती है। हजारों, लाखों टन वजन की ट्रेन आत्म-विश्वास जगाने के लिए किसी दवा या चलाना, क्रन उठाना, यह जब आपकी मस्तिष्कीय ___टॉनिक की जरूरत नहीं है, किन्तु आपको ध्यान, THERA ऊर्जा से सम्भव हो सकता है, तो कल्पना कीजिए, योग, जप. स्वाध्याय,जैसी विधियों का सहारा लेना आपकी मानसिक ऊर्जा में कितनी प्रचण्ड शक्ति पडेगा। ध्यान-योग-जप, यही आपका टॉनिक है, (पावर) होगी। यही वह पावर-हाउस है, जहाँ का कनेक्शन जुड़ते प्राचीन समय में मन को एकाग्र करके मन्त्र- ही शक्ति का अक्षय स्रोत उमड़ पड़ेगा। जाप करने से देवताओं का आकर्षण करने की घट अतः बन्धुओ ! जीवन में सफलता और महान । नाएँ होती थीं, क्या वे कल्पना मात्र हैं ? नहीं। आदर्शों के शिखर पर चढ़ने के लिए स्वयं को मानव, मन की प्रचण्ड शक्ति से करोड़ों मील दूर बैठे देवताओं का आसन हिला सकता है, तो क्या। __ अनुशासित कीजिए, आत्म-विश्वास जगाइये, अपने आस-पास के जगत् को, अपने सामने खड़े निर्भय बनिये और स्वयं के प्रति निष्ठावान ! रहिये........। व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकता? इसमें किसी प्रकार के मैस्मेरिज्म या सम्मोहन की जरूरत नहीं ३. चरित्रबल बढ़ाइये-चरित्र मनुष्य की है, किन्तु सिर्फ मनःसंयम, एकाग्रता और दृढ इच्छा सबसे बड़ा सम्पत्ति है । एक अंग्रेजी लेखक ने कहा शक्ति की जरूरत है। ___ "धन गया तो कुछ भी नहीं गया, स्वास्थ्य ___आज के युवा वर्ग में देखा जाता है, प्रायः इच्छा शक्ति का अभाव है, न उसमें मानसिक संयम है, गया तो बहुत कुछ चला गया और चरित्र चला गया तो सब कुछ नष्ट हो गया।" चरित्र या न एकाग्रता और न इच्छा शक्ति और यही कारण मॉरल एक ही बात है, यही हमारी आध्यात्मिक है कि आज का यूवक दीन-हीन बनकर भटक रहा और नैतिक शक्ति है, मानसिक बल है, हमें किसो है । जीवन में निराशा और कुण्ठा का शिकार हो भी स्थिति में किसी के समक्ष बोलने, करने या डट रहा है। असफलता की चोट खाकर अनेक युवक जाने की शक्ति अपने चरित्रबल से मिलती है। आत्महत्या कर लेते हैं, तो अनेक यूवक असमय चरित्र या नैतिकता मनुष्य को कभी भी पराजित में ही बुड्ढे हो जाते हैं, या मौत के मुह में चले ___ नहीं होने देती, अपमानित नहीं होने देती । सच्चजाते हैं। रित्र व्यक्ति, अपनी नैतिकता का पालन करने ____ मैं अपने युवा बन्धुओं से कहना चाहता हूँ, वे वाला कभी भी किसी भी समय निर्भय रहता है जागे, उठे-उत्तिष्ठत ! जाग्रत ! प्राप्य वरान्, और वह हमेशा सीना तानकर खड़ा हो सकता निबोधत ! स्वयं उठे, अपनी शक्तियों को जगायें है। चरित्रवान् की नाक सदा ऊँचो रहती है। 62. चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Ludation International PFON Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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