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________________ आत्मबहुत्ववाद और परिणामवाद को मानते हैं ! प्रकृति आदि पच्चीस तत्वों का ज्ञान होने से मुक्ति हो सकती है । प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द ये तीन प्रमाण हैं । सांख्य और योग ये दोनों प्रायः समानतंत्रीय हैं परन्तु कतिपय भिन्नता भी हैं । सांख्य निरीश्वर सांख्य और योग सेश्वर सांख्य कहलाते हैं । इसका आशय यह है कि ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है, किन्तु एक पुरुष विशेष को ईश्वर माना है । यह पुरुष विशेष सदा क्लेश, कर्म, कर्मफल और वासना से अस्पृष्ट रहता है । सांख्य असत् की उत्पत्ति और सत् का नाश नहीं मानते । चेतनत्व आदि की अपेक्षा सम्पूर्ण आत्माएँ समान हैं तथा देह, इन्द्रिय, मन और शब्द में, स्पर्श आदि के विषयों में और देह आदि के कारणों में विशेषता होती है। योग सम्पूर्ण सृष्टि को पुरुष के कर्म आदि द्वारा मानते हैं । दोष और प्रवृत्ति को कर्मों का कारण बताते हैं । सांख्यदर्शन तत्वज्ञान पर अधिक भार देता हुआ तत्वों की खोज करता है और तत्वों के ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति स्वीकार करता है। योगदर्शन यम, नियम आदि योग की अष्टांगी प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन कर योग की सक्रियात्मक प्रक्रियाओं के द्वारा चित्तवृत्तिनिरोध होने से मोक्ष की सिद्धि मानता है । सामान्य से योग के दो भेद हैं- राजयोग और हठयोग | पतंजलि ऋषि के योग को राजयोग तथा प्राणायाम आदि से परमात्मा के साक्षात्कार करने को हठयोग कहते हैं । ज्ञान, कर्म और भक्ति ये योग के तीन भेद हैं तथा योगतत्व उपनिषद् में मंत्रयोग, लययोग, हठयोग, राजयोग यह चार भेद किये हैं । वैशेषिक दर्शन - इस दर्शन का मूल ग्रन्थ वैशेषिक सूत्र है और आद्य प्रणेता कणाद ऋषि माने तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन Jain Education International जाते हैं । वैशेषिक, इस नामकरण के सम्बन्ध में मान्यता है कि इसमें आत्मा और अनात्मा के विशेष की ओर विशेष ध्यान दिया गया है और परमाणुवाद का विशेष रूप से वर्णन किया है । वैशेषिक द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय इन छह पदार्थों और प्रत्यक्ष व अनुमान इन दो प्रमाणों को स्वीकार करते हैं । कुछ विद्वानों ने अभाव को सातवाँ पदार्थ स्वीकार किया है । ये अभाव को तुच्छरूप नहीं मानते हैं । वैशेषिक सूत्रों में ईश्वर का नाम नहीं है । परन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि वैशेषिक दर्शन अनीश्वरवादी नहीं है, किन्तु ईश्वर के विषय में मौन रहने का कारण यह है कि वैशेषिक दर्शन का मुख्य ध्येय आत्मा और अनात्मा की विशेषताओं का प्ररूपण करना रहा है । वैशेषिक मोक्ष को निश्रेय अथवा मोक्ष नाम से कहते हैं और शरीर से सदा के लिए सम्बन्ध छूट जाने पर मोक्ष मानते हैं । तथा बुद्धि, सुख, दुख, इच्छा, धर्म, अधर्म, प्रयत्न, संस्कार और द्वेष इन आत्मा के नौ विशेष गुणों का अत्यन्त उच्छेद होना मोक्ष का लक्षण है । वैशेषिक पीलुपाक के सिद्धान्त को मानते हैं । नैयायिक दर्शन -- इस दर्शन के मूलप्रवर्तक अक्षपाद गौतम कहे जाते हैं । न्याय सूत्र इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है | अतः इसे न्याय दर्शन भी कहा जाता है । न्याय और वैशेषिक ये दोनों दर्शन समान तंत्रीय माने जाते हैं । बहुत से विद्वानों ने इस न्यायदर्शन के सिद्धान्तों की व्याख्या करने के लिये वैशेषिक सिद्धान्तों का उपयोग किया है । फिर भी जो भिन्नतायें हैं, उनका यहाँ उल्लेख करते हैं । न्यायदर्शन के अनुसार ईश्वर जगत् का सृष्टि कर्ता और संहारक है, वह व्यापक, नित्य, एक और सर्वज्ञ है और इसकी बुद्धि शाश्वती रहती है । २७१ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only membrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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