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________________ 3 मा ध्यान : रूप : स्वरूप ॐ -एक चिन्तन गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा--भन्ते ! किसी एक परमाणु पर मन को सन्निवेश करने से क्या लाभ होता है ? भगवान महावीर ने उत्तर दिया-गौतम ! उससे चित्त का निरोध होता है । चित्त का र निरोध अर्थात् मन की अस्थिरता का स्थिरीकरण । मन एक बहत बड़ी शक्ति है, वह जितना सूक्ष्म तत्व है उतना हो व्यापक भी, ऐसे तो वह अनिन्द्रिय है, मूर्त होने पर भी आँखें उसे देख नहीं पातीं। कान, नाक, जिह्वा या त्वचा उसे भाँप नहीं पाते, वह अनूठा अपनी माया बिछाकर समग्र जगत को नचाता है। ऐसे तो मन को एकाग्र करने की अनेक पद्धतियाँ हैं उनमें से एक पद्धति हैध्यान ! जैन दर्शन में ध्यान उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्-किसी एक विषय 1. में अन्तःकरण की वृत्ति का निरोध-टिकाये रखना ध्यान है। प्राचीन युग में जैन साधना में ध्यान का महत्त्व सर्वोपरि था, आत्मनिष्ठ साधक शुद्ध स्वरूप में ध्यानमग्न रहते थे । जैन दर्शन में ध्यान तप के बारह प्रकार में ग्यारहवाँ प्रकार है। ऐसे तो तप के बाह्य और आभ्यन्तर दो प्रकार हैं, उनमें से ध्यान आभ्यन्तर तप का एक प्रकार है । तप-संयम स्वाध्याय के साथ ध्यानमग्न आत्मा अनन्त गण अधिक कर्म निर्जरा करता है। मुनियों की दिनचर्या में | भी दिन और रात्रि के एक-एक प्रहर अर्थात् छः घण्टे का ध्यान सर्वज्ञ कथित नियोजित है। अतः एक आलम्बन पर मन को टिकाना और मन, वचन और काया की प्रवृत्ति रूप योग का निरोध करना ही ध्यान है। मानसिक उत्तेजना यहाँ हम 'योग निरोधो वा ध्यानम्' अर्थात् योग निरोधात्मक ध्यान की चर्चा नहीं करते हैं क्योंकि इस ध्यान का समग्र रूप केवली भगवन्तों को होता है । हम सर्व सामान्य मनुज को शक्ति इस पंचम युग में अल्प है। हम अधिक से अधिक एकाग्रता रूप ध्यान का अभ्यास करते हैं और आंशिक रूप में योग निरोध रूप ध्यान भी। फलतः हमारा चंचल मन रूपान्तरित होकर कुछ शान्त जरूर होता है। ॐ डॉ० साध्वी मुक्तिप्रभा एम. ए., पी-एच. डी. (बा. ब्र. उज्ज्वलकुमारीजी की सुशिष्या) १ उत्तराध्ययन २६/२६ २ पढमपोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । -उत्तराध्ययन २६/१२ तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन 2) 6.0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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