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________________ ( १६ ) जिनका मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त हुआ । अनन्त प्रस्तुत ग्रन्थराज के सम्पादन में सम्पादक आस्था के केन्द्र सद्गुरुवर्य उपाध्याय पूज्य गुरुदेव मण्डल के विद्वानों का जो सहयोग प्राप्त हुआ है श्री की असीम कृपा के फलस्वरूप ही प्रस्तुत ग्रन्थ उसका वर्णन में किस शब्दावली में करू, यह समझ मूर्त रूप धारण कर सका है। उपाचार्य श्री देवेन्द्र में नहीं आ रहा है। सर्वप्रथम मैं उन विद्वानों का मुनि जी का पथ प्रदर्शन प्रकाश स्तम्भ की तरह स्मरण कर रही हूँ जिन्होंने मेरे पत्र को सन्मान मेरे लिए उपयोगी रहा। सरलमना पं० हीरामुनि देकर अपने मौलिक लेख भिजवाने का अनुग्रह जी म०, विद्वद्रत्न श्री गणेश मुनिजी म०, कलम के किया। डॉ० एम० पी० पटैरिया, डॉ. तेजसिंहजी धनी श्री रमेश मुनि जी, उत्साह के ज्वलन्त प्रतीक गौड़, डॉ० गुलाबचन्दजी जैन, पण्डित देवकुमारजी, श्री राजेन्द्रमुनि जी प्रभृति गुरुजनों का हार्दिक डॉ० नरेन्द्र भानावत प्रभृति विज्ञों ने सम्पादक आशीर्वाद तथा सहयोग जो प्राप्त हुआ है उसके मण्डल में अपना नाम देने की स्वीकृति प्रदान की लिए मैं आभार व्यक्त न कर यही मंगलकामना तथा डॉ० एम० पी० पटैरिया जी ने विद्वानों से करती हैं कि उनका वरद-हस्त सदा इसी प्रकार रहे सम्पर्क कर अनेक मौलिक लेख मंगवाये तथा डॉ. जिससे कि मैं साहित्य के क्षेत्र में अपने कदम आगे तेजसिंहजी गौड़ ने कलम का स्पर्श कर कुछ लेखों बढ़ा सकू। को परिष्कृत परिमार्जित करने में सहयोग प्रदान परमादरणीया ज्येष्ठ गुरुबहिन प्रतिभा किया अतः उनका स्मरण स्मृत्याकाश पर सदा मूर्ति श्री चारित्रप्रभा जी की प्रेरणा मेरे लिए चमकता रहेगा। स्नेहमूर्ति श्रीचन्दजी सुराना 'सरस' सम्बल रूप में रही तथा दर्शनप्रभाजी की प्रेरणा ने ग्रन्थ को मुद्रण कला की दृष्टि से सर्वाधिक भी मेरे साथ रही । प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में सुन्दर बनाने का प्रयास किया तथा समय पर ग्रन्थ मेरी लघ गरु बहिन तेजस्वी प्रतिभा तैयार करने का कठिन श्रम किया. वह भी विस्मत की धनी महासती गरिमाजी का हार्दिक नहीं किया जा सकता । जिन श्रद्धालुओं ने अनदान IED सहयोग प्राप्त हुआ है । वे स्वयं कवयित्री देकर प्रकाशन कार्य में सहयोग दिया उनकी हैं इसलिए कविता विभाग के सम्पादन में उनका अपार श्रद्धा व्यक्त होती है। उन सभी के जो सहयोग मिला है वह भुलाया नहीं जा सकता सहयोग के कारण ही ग्रन्थ प्रबुद्ध पाठकों के पाणिहै । साध्वी अनुपमाजी एवं साध्वी निरुपमाजी की पद्मों में पहुंच रहा है, इसकी मुझे हार्दिक सतत् प्रेरणा और उनकी सेवा के कारण प्रस्तुत प्रसन्नता है । १ कार्य करने में मुझे सहयोग रहा है। मैं चाहूँगी कि उनका सतत् आध्यात्मिक उत्कर्ष होता रहे । का साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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