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________________ पूर्ण सत्य, सर्वज्ञ, सर्वशक्त सत्ता अथवा स्थिति को आवश्यकता है। इसके लिए अध्येताओं को मानता है चाहे वह ज्ञान मात्र ही क्यों न हो । जैन प्रोत्साहन तथा प्रेरणा प्रदान कर उनमें दर्शनों के 10 पदार्थ मीमांसा को एक-एक कोण से विज्ञान की वैज्ञानिक अनुशीलन के प्रति अभिरुचि जागृत करने तुला पर रखकर निष्पक्ष समन्वयात्मक समीक्षा की की आवश्यकता है। टिप्पण-सन्दर्भ 1. History of Indian Philosophy-S. N. १०. 'अतएव धर्मास्तिकाय: प्रवत्यनुमेय: अधर्मास्तिकायः Dass Gupta, Page 176 स्थित्यनुमेयः ।'-सर्वदर्शनसंग्रह-पृ. १५२ ।। २. भारतीय दर्शन-डॉ० कुवरलाल व्यासशिष्य- ११. ऋज गति Rectilinear Motion तथा वक्रगति पृ. १७४ Curvilinear Motion कहलाती है। ३. 'सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि ।' Handbook of Elementary Physics-N. -तत्त्वार्थसूत्र १/१ Koshkin and M. Shirkevich-Translated ४. 'अत्र संक्षे पतस्तावज्जीवाजीवाख्ये द्वे तत्वे स्तः ।' by F. Leic Page 17 -सर्वदर्शन संग्रह-पृ. १४३ १२. वाचारम्भणं विकारोनामधेयम ......। छा० उ०. ५. द्रव्य के गुण-डा. डी. बी. देवधर-पृ.३ ६. विज्ञान का दर्शन-डा. अजित कुमार सिन्हा- १३. 'रूपरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ।' पृ. ७३ -तत्त्वार्थसूत्र ५/२४ ७. विज्ञान का दर्शन-पृ. १४७ १४. भारतीय दर्शन का इतिहास-हरदत्त शर्मा ८. 'गुणपर्यायवद्रव्यम् ।' तत्त्वार्थसूत्र ५/३७ पृ. ८१ ९. सवदर्शन संग्रह पृ. १५४ सूचिरं पि अच्छमाणो, वेरुलिओ कायमणिओ मीसे । न य उतेइ कायभाव, पाहन्न गुणे नियएण ॥ -ओघ नि.७७२ वैडूर्य रत्न काच की मणियों में कितने ही लम्बे समय तक क्यों न मिला रहे, वह अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण रत्न ही रहता है, कभी काच नहीं होता। २०८ तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन C 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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