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________________ भव की जा सकती है। यह नहीं कि यह छोटा सा बच्चा है, इससे क्या बोलना । आप समान भावना से बात करते हैं । इसी प्रकार आप धनी और गरीब में भी भेद नहीं मानकर समान रूप से व्यवहार करते हैं । गरीबों के साथ तो आपका आत्मीय व्यवहार देखते ही बनता है । आपको धनवानों का ऐश्वर्यं आकर्षित नहीं कर पाता । आप तो अपनी साधना में ही लगन लगाये रहते हैं । इसी प्रकार जब आपसे किसी भी सम्प्रदाय, पन्थ, मजहब के सन्त सतियाँ मिलते हैं तब आप बिना किसी भेदभाव के उनके साथ बैठना, बोलना, प्रवचन देना आदि सहज भाव से निभा लेते हैं। सभी आपकी सहजता और सरलता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। जिस प्रकार आप गच्छ के बड़े सन्तया सतियों के साथ प्रेम एवं सद्भावपूर्वक व्यवहार करते हैं ठीक उसी प्रकार छोटे सन्त या सतियों से भी आपका व्यवहार आत्मीयता पूर्ण रहता है। आपके तन, मन, जीवन में अहंकार का नाम ही नहीं है । आपकी सरलता के संदर्शन प्रत्येक व्यक्ति आपके सम्पर्क में आकर अनुभव कर सकता है । आप अपने कार्य अपनी छोटी सतियों से कराने के पक्ष में नहीं रहते हैं । आप अपने छोटे बड़े कार्य स्वयं अपने हाथों से ही कर लेते हैं । इस सब कारणों से आपको सहज ही सरलता की प्रतिमूर्ति कहा जा सकता है । प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति - आपका हृदय स्नेह की स्रोतस्विनी से ओतप्रोत है । अपनी शिष्याओं को आप माता के समान ममता और वात्सल्य प्रदान करती हैं। यह प्रेम और वात्सल्य भाव अपनी शिष्याओं के प्रति तो है ही, साथ ही जो भी आपके सान्निध्य में रहते हैं उनको भी आप अपने निर्मल स्नेह के निर्झर से नहला देती हैं । आपका अपनी गुरु बहिनों एवं उनकी शिष्याओं के प्रति भी असीम स्नेह रहा है । जिस किसी के साथ भी आपने चातुर्मास किये वे आपके स्नेहिल व्यवहार से अत्यधिक प्रसन्न और प्रभावित रहते । उन्हें १६४ Jaincation International ऐसा अनुभव होता है जैसे वे आपकी ही शिष्याएँ हैं। आपके स्नेहसिक्त व्यवहार के कारण वे भी आपको अपने गुरु गुरुणी जी के समान सम्मान एवं महत्व देते हैं। विनय विवेक की प्रतिमा- आपका जीवन विनय गुण से ओत प्रोत है । अहंकार तो आपको छूता ही नहीं है । बड़ों के प्रति असीम आदर-सत्कार सम्मान की भावना सदैव बनी रहती है। बड़ों के वचनों को आप ससम्मान स्वीकार करते हैं । गुरुजनों के प्रति आपका विनय प्रशंसनीय है । आप अपनी शिष्याओं को भी सदैव विनय का पाठ पढ़ाती रहती हैं। आपकी मान्यता है कि विनयपूर्ण व्यवहार सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता | 'गुरुराजा अविचार-' णीया' यह आपके जीवन का सिद्धांत है । में क्षमा की देवी - आपकी मान्यता है कि क्षमा ही तप का सार है। इस मान्यता के अनुरूप आप - अद्भुत सहनशीलता है । आपके जीवन में उग्रता तो कभी दिखाई ही नहीं दी । शान्त - प्रशान्त आपका जीवन है । आप सौम्यमूर्ति हैं । आप कटूक्तियों और अपशब्दों का उत्तर भी मधुर मुस्कान सहनशीलता विचलित नहीं होती । कभी से के साथ देती हैं, उफान और तूफान में भी आपकी बोलना तो आपने सीखा ही नहीं । आप अपनी शिष्याओं को भी डांट-फटकार के रूप में कभी कुछ नहीं कहती । अपने प्रति कटु वचन बोलने वाले अथवा दुर्व्यवहार करने वाले को भी आप क्षमा प्रदान कर देती हैं । आप में क्षमा का अद्भुत गुण विद्यमान | है । मित एवं मृदुभाषी - 3 - आप आवश्यकता से अधिक नहीं बोलती हैं । बड़े ही संतुलित शब्दों में बोलने के कारण आप में मितभाषी का गुण आ गया है । फिर जो भी बोलती हैं वह मधुरता, मृदुता 'के साथ बोलती हैं। अपनी वाणी के अनुरूप | ही आपका व्यवहार भी मधुर है । मित एवं मृदु द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन साध्वीरत्न ग्रन्थ Private & Personal Use On www.jainel.k.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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