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________________ पदार्पण पुनः मेवाड़ में हो गया । मेवाड़ में पहुँचते हो मेवाड़ की धर्मप्रेमी, गुरुभक्त जनता ने सायरा में आपका भव्य स्वागत किया। वि. सं. २०४४ के वर्षावास के लिए शेरा प्रांत, भीलवाड़ा, डूंगला आदि अनेक श्रीसंघों की । ओर से आपकी सेवा में विनतियाँ आईं। संगठन शक्ति और आग्रह भरी विनम्र विनती को देखते हए आपने अपने चातुर्मास की स्वीकृति शेरा प्रांत स्थित नांदेशमा के श्रीसघ को प्रदान कर दी। नान्देशमा कोई बड़ा गाँव नहीं है फिर भी लोगों की भक्तिभावना को देखकर आपने चातुर्मास यहाँ किया । चातुर्मास काल में आसपास के सभी श्रीसंघों और जैनेतर लोगों ने भाग लेकर धार्मिक If लाभ अजित किया और इस प्रकार इस चातुर्मास को ऐतिहासिक बनाया । यहाँ की पच्चीस बालकबालकाओं ने प्रतिक्रमण सीखा। चातुर्मास समाप्त होने के उपरांत आप ग्रामानुग्राम विहार करते हुए उदयपुर पधारे। अस्वस्थता के कारण कुछ दिन उदयपुर में रिथरता रहीं । इसी बीच स्थान-स्थान से चातुर्मास के लिए विनतियाँ आने लगीं। देश-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखकर आपने सुप्रसिद्ध वैष्णव तीर्थस्थान नाथद्वारा के श्रीसंघ को वि० सं० २०४५ के चातुर्मास को स्वीकृति प्रदान कर दो। वर्षावास नाथद्वारा : नाथद्वारा के श्रीसंघ में अच्छी/धर्मजागृति है। यहाँ कई लोग तत्वों के जानकार भी हैं । आपके वर्षावास से और भी अच्छी धर्मजागृति हुई। महासती श्री कुममवती जी म० सा० को सद्प्रेरणा से रोने-धोने की कुप्रथा को कम करने का अनेक लोगों ने त्याग किया और अभी भी वहाँ इसका परिपालन किया जा रहा है। आपके उपदेशों से प्रभावित होकर दस-ग्यारह लोगों ने सजोडे शीलब्रत ||६ ग्रहण किया । आपकी प्रेरणा से यहाँ तपस्याएँ भी खूब हुईं। सामूहिक आयम्बिल, तेले, प्रथम बार आपकी प्रेरणा से हए । नाथद्वारा के इतिहास में प्रथम बार इस वर्ष मासखमण तप हुआ। मासखमण | की यह तपस्या श्रीमती रतनबाई धर्मपत्नी श्री मोहनलाल जी राठौड़ ने की थी। इस प्रकार नाथद्वाग का चातुर्मास समाप्त हुआ और चातुर्मास समाप्त होने के पश्चात् नाथद्वारा से विहार कर अपनी शिष्याओं-प्रशिष्याओं के साथ चित्तौडगढ पधारी। लघु साध्वियों की परीक्षा के कारण आपको लम्बे समय तक ठहरना पड़ा। परीक्षा समाप्त होते ही आपने उदयपुर की ओर विहार कर दिया। उदयपुर की ओर गुरुदेव की सेवा में : इस समय परम पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि म० सा०, पू. उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा० आदि अपना इन्दौर का यशस्वी चातुर्मास समाप्त कर विभिन्न ग्राम-नगरों को लाभान्वित कर उदयपूर पधारकर अपनी अमृतमयी वाणी से उदयपुर की जनता का ताप मिटा रहे थे। उदयपुर में 20 श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय भवन के स्वाध्याय भवन का उद्घाटन हआ, वर्षी तप के पारणे हुए । सभी अवसरों पर आप अपनी शिष्याओं सहित उपस्थित रहीं । उदयपुर में ही आपका चातुर्मास डूंगला घोषित हुआ। वर्षावास डूंगला-श्रीसंघ इंगला की अनेक वर्षों से आपके चातुर्मास की विनती चली आ रही थी। डूंगला में भी धर्म के प्रति अच्छी लगन और निष्ठा है । सेवाभावना भी उल्लेखनीय है । दिनांक १३-६-८६ को आपका डूंगला में चातुर्मास प्रवेश समारोह के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ। चातुर्मास प्रारम्भ होते ही धर्मध्यान की , प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ हो गयीं । प्रतिदिन प्रार्थना, प्रवचन, चौपाई आदि तप-जप के महोसत्व हो रहे हैं । इन पंक्तियों के लखने तक विभिन्न धार्मिक आयोजन उत्साह एवं उमंग सहित हो रहे हैं। . द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन BE कम भिनन्दन ग्रन्थ 1 - Gorsrivate & Personal Use Only 4 Jain Sucation International www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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