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________________ गया था। श्री संघ ने आपकी सेवा में दीक्षा तक ठहरने की आग्रह भरी विनती की। श्री संघ सोनीपत के आग्रह को स्वीकार करते हुए आप अपनी शिष्याओं सहित दीक्षा तक वहीं ठहरे और दीक्षोपरांत आपने सोनीपत से विहार कर दिया। पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अम्बाला आदि छोटे-बड़े ग्राम-नगरों में जिनवाणी और जैनधर्म का प्रचार करते हुए आप पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ पधारे । चण्डीगढ़ आधुनिक तरीके से बसा हुआ एक सुन्दर नगर है। पंजाब के साथ ही हरियाणा की भी यह राजधानी है। नगर विभिन्न सेक्टरों में बसा हुआ है जो दूर-दूर हैं । इस कारण चण्डीगढ़ में प्रतिदिन प्रवचन नहीं हो सके । यहाँ प्रवचन रविवार को ही होता था। जब कभी यहाँ साधु-साध्वियों का पदार्पण होता है तो श्री संघ के सदस्यों को साधुसाध्वियों के पधारने की एवं प्रवचन की सूचना अध्यक्ष या मन्त्री द्वारा पत्र से दी जाती है। ANSAXEORN महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. का चण्डीगढ़ में रविवार के दिन प्रथम प्रवचन हुआ। आपके सारगर्भित और सटीक प्रवचन से वहाँ के लोग अत्यधिक प्रभावित हए। उन्होंने अगले रविवार को प्रवचन फरमाने की आग्रह भरी विनती की। श्री संघ की विनती स्वीकार कर मात्र एक दिन के प्रवचन के लिए आपको एक सप्ताह तक रुकना पड़ा। एक सप्ताह तक रुकना बड़ा कठिन था, किन्तु लोगों का आग्रह एवं भावना आदि को देखकर विषम परिस्थिति होने पर भी रुकना पड़ता है । फिर इस ओर जैन साधु-साध्वियों का आगमन कम ही हो पाता था। इस कारण जिनवाणी का पान करने वाले तषितों की प्यास बुझ नहीं पाती थी। आप रुकों और अगले रविवार को ज्ञानभित प्रवचन फरमाकर श्रोताओं को तृप्त किया। सन्त समागम-चण्डीगढ़ से विहार कर दिया। मार्ग में एक छोटा गांव करौली पड़ता है । करौली पहुँचने पर भण्डारी पदमचन्दजी म. सा., हरियाणा केशरी श्री अमरमुनिजी म. सा. आदि सन्त रत्नों के दर्शन और प्रवचन श्रवण आदि का लाभ मिला। करौली से विहार कर रोपड़ पहुँची । यहाँ शशिकांताजी महाराज, विदुषी श्री सरिताजी म. आदि से मिलना हुआ। इससे पूर्व चण्डोगढ़ आते हुए सरहिन्द गाँव में महासती श्री स्वर्णकांताजी म. सा. से मिलना हुआ था। सभी साधु-साध्वियांजी महाराज का अत्यधिक स्नेह मिला। होशियारपुर पहुँचने पर महासती श्री सावित्रीजी म. सा. एवं महासती श्री बाल शिमलाजी म. सा. ने आपका भावभीना स्थागत किया। यहाँ महावीर जयन्ती धूमधाम से मनाई गई। यहां से विहार कर जब आप मुकेरिया पधारी तो यहाँ श्री सघ जम्मू आपकी सेवा में चातुर्मास की विनती लेकर उपस्थित हुआ। श्रीसंघ की आग्रह भरी विनती को देखकर आपने जम्मू में वर्षावास करने की स्वीकृति प्रदान कर दी । और इसके साथ ही आपके कदम जम्मू की ओर बढ़ चले। काश्मीर की ओर-चातुर्मास प्रारम्भ होने में अभी दो माह के लगभग दिन शेष थे । इस र अवधि में आपने काश्मीर में धर्म प्रचार करने का विचार किया। विचार दृढ़ हआ और उसके साथ ही विहार भी हो गया। छोटे-बड़े ग्राम-नगरों को अपनी पीयूष वर्षी वाणी से आप्लावित करते हुए, आप काश्मीर की राजधानी श्रीनगर पधारी। आपके साथ आपकी शिष्यायें भी थीं। श्रीनगर में आपका भावभीना स्वागत हुआ । जम्मू से श्रीनगर तक का मार्ग विकट भी है और मार्ग में अधिकांश अजैन क्षेत्र हैं और ये लोग विशेष रूप से सामिषभोजी हैं। उधर के ब्राह्मण जिन्हें काश्मीरी पण्डित कहते हैं, वे भी मांस का सेवन करते हैं। महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. जिस ग्राम में भी पधारी आपने वहाँ के 3 द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन १५७ POOR साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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