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________________ जन्म और मरण इस सृष्टि का ध्रुव नियम है । जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित का है । इससे आज तक कोई भी बच नहीं पाया है । महासती श्री कुसुमवतीजी को अपनी सद्गुरुवर्या का वियोग अत्यधिक व्यथित कर रहा था। इस व्यथा को हरने वाली यदि कोई औषधि है तो वह समय ही है। है । समय बड़े से बड़े घाव को भर देता है। वर्षावास का शेष समय पूरा हुआ और उसके साथ ही सद्गुरुवर्या की चिरस्मृति के साथ अन्तिम आशीर्वाद लिए आपने पाली से विहार कर दिया। मारवाड़ के ग्राम-नगरों को अपनी चरण-रज 7 से पावन करते हुए आपने मेवाड़ की भूमि में अपने कदम रखे । श्री संघ उदयपुर की विनती को मान देते हुए वि. सं. २०२४ को वर्षावास उदयपुर में किया । उदयपुर अपनी आन-बान-शान प्राकृतिक सौन्दर्य और अन्य अनेकों विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ जैनधर्मावलम्बियों की संख्या भी विपुल मात्रा में है । अपार जनमेदिनी के मध्य महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. जब प्रवचन फरमाती थीं तो ऐसा लगता था मानो मेघ अमृत वर्षा कर रहे हैं । भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी का दिन सद्गुरुवर्या श्री सोहन कुवर जी म. सा. की प्रथम पुण्य तिथि जपतप के साथ मनाई गई । पाँच सौ आयम्बिल तप एक साथ सम्पन्न हुए । इसी दिन गरीबों को भी भोजन करवाया गया। आपके सदुपदेशों से प्रभावित होकर संसारपक्षीय आपके मामा श्री कन्हैयालालजी सियाल एवं मामी श्रीमती चौथबाई की सुपुत्री सुश्री स्नेहलता कुमारी (वर्तमान में साध्वी दिव्यप्रभा) की वैराग्य भावना जागृत हुई। प्रथम शिष्या की प्राप्ति-उदयपुर का यशस्वी वर्षावास समाप्त हुआ। वर्षावास समाप्ति के ठीक पश्चात् बगडुन्दा निवासी श्री गोपीलालजी छाजेड़ अपने गाँव में पधारने की विनती लेकर महा। सती श्री कुसुमवती जी म. सा. की सेवा में उपस्थित हुए। उनकी बहिन हीराकुमारी की वैराग्य भावना V/ थी और वे आपके गुणों से प्रभावित होकर आपके पास ही दीक्षा दिलाना चाहते थे। उसी उद्देश्य को अपने मन में रखकर उन्होंने अपने क्षेत्र को स्पर्श कर पावन करने की अत्यधिक आग्रह भरी विनती की। उनके आग्रह को ध्यान में रखकर महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए बगडुन्दा पधारें। आपके ज्ञानगर्भित प्रवचनों एवं संगीत की मधुर स्वर लहरी को सुनकर बगडुन्दा की जनता 3|| मन्त्रमुग्ध हो रही थी। प्रवचनों के मध्य जब आपके माताजी महाराज तथा आप स्वयं भजनों की कड़ियाँ सस्वर गातीं तो ऐसा प्रतीत होता मानो कोकिलाएँ पंचम स्वर से गा रही हों। कुछ समय पश्चात् बगडुन्दा से विहार कर दिया। वैराग्यवती हीराकुमारी भी दीक्षा अंगीकार करने की भावना से आपके साथ थी । वर्षावास डूंगला सम्पन्न हुआ। नाथद्वारा श्री संघ को विदित हुआ कि महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. के माथ एक वैरागिन बहिन है और उसकी दीक्षा भी निकट भविष्य में ही होने वाली है। तो श्री संघ नाथद्वारा ने आपकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया-“महाराजश्री ! वैरागिन बहिन के दीक्षोत्सव के आयोजन का लाभ लेने का अवसर हमारे संघ को प्रदान करने की कृपा करें।" श्री संघ नाथद्वारा की इस भावभीनी विनती में विनम्रता के साथ आग्रह भी था । श्री संघ नाथद्वारा की विनती को ध्यान में रखकर महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दीक्षोत्सव के आयोजन की स्वीकृति मिल जाने से श्रीसंघ नाथद्वारा में हर्ष, उमंग और उत्साह का द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन १५१ 000 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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