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________________ राजस्थान की ओर चातुर्मास समाप्त हुआ और आपने विहार कर दिया। फिर सद्गुरुवर्या के पास जा पहुँची। मालवभूमि के ग्राम-नगरों को पावन करते हुए सद्गुरुवर्या के साथ आपने राजस्थान के कोटा नगर की ओर विहार कर दिया। उन दिनों मार्ग निरापद नहीं थे। आज की भांति मार्ग सुविधाजनक भी नहीं थे। अतः विहार और फिर वह भी लम्बा विहार सुविधाजनक नहीं था। फिर भी विभिन्न Mil बाधाओं को पार करते हुए आप अपनी सद्गुरुवर्या के साथ कोटा पधारी और इस वर्ष अर्थात् सं. २००१ A का चातुर्मास श्रीसंघ के अत्यधिक आग्रह से कोटा में किया । __ कोटा का यशस्वी चातुर्मास सम्पन्न हुआ और कोटा से मारवाड़ की ओर विहार हुआ। मार्ग 8 में आने वाले ग्राम-नगरों में अपना प्रभाव छोड़ते हुए समय के प्रवाह के साथ सती-मण्डल भी अपने कदम बढ़ाता रहा। सोजत सम्मेलन में इसी समय सूचना प्राप्त हुई कि सोजत में एक लघु सम्मेलन का आयो। जन किया जा रहा है । इसके पूर्व भी ऐसे ही साधु-सम्मेलनों का आयोजन हो चुका था । महासतीजी ने इस सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए अपना मानस बना लिया और समय पर आप सोजत पधार गईं। महासती श्री कुसुमवती जी म. को इस अवसर पर सोजत में पधारे हए अनेक मुनि, भगवन्तों अ । महासतियों के दर्शन करने का अवसर मिला । अनेक मर्मज्ञ मुनिराजों, विदुषी महासतियों से भी विचार चर्चा करने का अवसर मिला । वरिष्ठ मूर्धन्य बिद्वान मुनिराजों के प्रवचन श्रवण का भी लाभ मिला । आपके लिए एक प्रकार से यह नवीन अनुभव था। इस सम्मेलन में अनेक प्रश्नों पर खुलकर विचारविमर्श हुआ था। अनेक मुनिराजों और महासतियों से परिचय भी हुआ था। कुल मिलाकर सोजत सम्मेलन आपके लिए ज्ञानवर्द्धक सिद्ध हुआ। राजस्थान से उग्र विहार करते हुए महासती श्री कुसुमवती जी म. सा., माताजी महाराजश्री कैलाशकुवर जी म. सा., महासती श्री सौभाग्यकुवरजी म. सा. तथा अन्य सतियों के साथ भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली पधारे । अभी दिल्ली पधारे एक माह भी व्यतीत नहीं हुआ था कि गुरुणीजी का आदेश मिला कि महासती श्री पदमकुवर जी म. का स्वास्थ्य ठीक नहीं है अतः शीघ्र मारवाड़ लौट आओ । अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, मार्ग की बाधाओं को पार करते हुए आप दिल्ली पधारे थे । उन दिनों अजमेर से जयपुर का मार्ग बहुत विकट था। आहार-पानी की भी समस्या रहती थी। उपलब्ध भी होता तो बड़ी कठिनाई से । अनेक बार प्रासुक आहार के अभाव में केवल पानी सहारे रहना पड़ता था। विहार भी लम्बे-लम्बे करने पड़ते थे । पन्द्रह-सोलह किलोमीटर चलकर थोड़ा विश्राम करते और फिर चल पड़ते। इतनी कठिनाइयों को सहन करते हए आप दिल्ली पधारे ही थे कि 'गुरोराज्ञा अविचारणीया' समझकर पुनः उसी बीहड़ पथ पर कदम बढ़ा दिये जिसकी थकान अभी उतरी ही नहीं थी। इसका एकमात्र कारण यह है कि महासती श्री कुसुमवती म. सा. अपनी गुरुणी की परम आज्ञाकारिणी थीं। दिल्ली से विहार कर महासतीजी ब्यावर पधारों। विक्रम संवत २०१३ का वर्षावास ब्यावर में हुआ । उस समय पंजाब केसरी श्री प्रेमचन्दजी म. सा. का वर्षावास भी ब्यावर में था। पंजाबकेसरी श्री प्रेमचन्द जी म० सा० ओजस्वी प्रवचनकार थे। उनके प्रवचन एवं आगम श्रवण का लाभ इस वर्षा द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन १४६ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Drivated PersonaliticeOnly www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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