SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म में विद्यमान साध्वी संघ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से समाज पर बहत उपकार कर रहा है साध्वियाँ समाज में स्त्री-शिक्षा और स्त्री-जागृति का कार्य करके नारी समाज को उन्नति के मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। वर्तमान काल में तो स्त्री-शिक्षा का विकास हो रहा है, किन्तु विचार कीजिये जब स्त्री-शिक्षा नहीं के बराबर थी तब साध्वी समाज द्वारा बालिकाओं के साथ-साथ युवा एवं प्रौढ़ महिलाओं को भी ज्ञान प्रदान किया जाता रहा है । जिसके परिणामस्वरूप नारियों में एक नई चेतना उत्पन्न हुई । आज भी साध्वी समाज द्वारा नारी जागरण एवं शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण र | दिया जा रहा है । बालिकाओं में धार्मिक संस्कार उनके द्वारा ही बोये जा रहे हैं। यही कार्य बालकों के IIKE) लिए भी किया जा रहा है। इससे समाज में नैतिक जागृति उत्पन्न होती है, जो आगे चलकर जीवन में अत्यधिक उपयोगी प्रमाणित होती है। ) गौरव गरिमा मण्डित सदगुरुणी परम्परा ) भगवान महावीर ने केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद चतुर्विध संघ की स्थापना की। साधुओं में गणधर गौतम प्रमुख थे तो साध्वियों में चन्दनबाला मुख्य थी । किन्तु उनके पश्चात् कौन प्रमुख स हुईं, इस सम्बन्ध में इतिहास मौन है। वैसे आर्या चन्दनबाला के पश्चात् अनेक सन्नारियों द्वारा जैन भागवती दीक्षा लेने का वर्णन मिलता है। इनमें आर्या सुव्रता से लेकर साध्वी धारिणी तक का नाम है किन्तु सुव्यवस्थित परम्परा रूप में नामोल्लेख नहीं है। प्राचीनकालीन साध्वियाँ वीर निर्वाण की दूसरी-तीसरी शताब्दी में महामन्त्री शकलाल की पुत्रियाँ और आर्य स्थूलभद्र KI की बहनें यक्षा, यक्षदिन्ना, भूता, भूतदिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा इन सातों ने भी प्रव्रज्जा ग्रहण की थी। वे अत्यन्त प्रतिभासम्पन्न थीं। उन्होंने अन्तिम नन्द की राज्यसभा में अपनी अद्भुत स्मरणशक्ति के चमत्कार से वररुचि जैसे मूर्धन्य विज्ञ के अहंकार को नष्ट किया था। इन सभी साध्वियों का साध्वी संघ में विशिष्ट स्थान था। साध्वियों की पट्ट परम्परा भी उपलब्ध नहीं होती है। वाचनाचार्य आर्य वलिस्सह के समय हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार आर्या पोइणी और तीन सौ अन्य साध्वियों की जानकारी मिलती है। कलिंग नरेश महामेघवाहन खारवेल द्वारा वीर निर्वाण की चतुर्थ शताब्दी के प्रथम चरण में कुमार गिरि पर आगम परिषद हुई थी, इसमें आर्या पोइणी भी तीन सौ श्रमणियों के साथ उपस्थित हुई थी।। इससे आर्या पोइणी की प्रतिभा का पता चलता है । अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती। वीर निर्वाण की पांचवीं शताब्दी में कालकाचार्य द्वितीय की भगिनी साध्वी सरस्वती का विवरण उपलब्ध होता है । उनके पिता का नाम वैरसिंह और माता का नाम सुरसुन्दरी था। राजकुमार , द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन १०६ 30 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Orprivate Personalise only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy