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________________ समण-पहाविगा अस्सिं लोगे संघा बह-विज्जए जिणसासणे वि। चउविह-तित्था तित्था भगवय-महावीरस्स पच्छा ।२६।। आगम-पवीण-सीसा तम्मि समयम्मि अवि जाया ण । अस्सिं समयम्मि तु अवि सुय-पारंगया दोसते ।।२७।। चंदणवालासई वि महासई णामा विक्खाया। समणी परंपराए सुगुण-गण-समद्धि-संजुत्ता ॥२८।। कुमई-पह-विजेया तु मोक्ख-मग्ग--पवत्ता महासई । सुद्ध-तत्त--णाणह्र सयल-कम्म--विणट्ठ--रत्ता वि ॥२६।। अमर-आणंद-पोक्खर-देविद-सिवाइ-मुणी जस्स संघे । सुमोक्ख-मग्ग-रमंता जण-मण-कल्लाण-सय-अहिरत्ता य ॥३०॥ समण-संघ-पवट्ठिगी गुरणी-सोहण-कुवर-महासई वि । सा तु सेट्ठा जेट्ठा वि गुण-रयण-विभूसिया जुत्ता य ॥३१॥ विज्जागुण-संजुत्ता आगम-धारा-कल्लाण-कारिणी। संजम-सील-सुगंधा किं ण विज्जए इह लोयम्मि ॥३२।। विदुस्सेण हि वंसस्स कित्ति-जस-वइभवं वि उप्पज्जए । जीवाणं जीवणं वि आजीवणं आणंदणं अवि ॥३३॥ उत्तम-गुरुभत्ती अवि किं किं ण साहेइ अस्सिं लोगे। तइलुक्करयणेणं वि बहुमुल्ल-रयणं किं ण सिया ।।३४।। अणादी-संसारे चिर-परिचिय-विस्समहिलं । जो जाणेसि हियाहियं जडमए तत्थेव सत्तो सि किं । अंतासंतिमुवेहि मुंच जडतं संभावय सं-अप्पमं । णिच्चं चेतसि चितमप्पविमलं चिदुवमेगं परं ॥३५॥ चागं विणा व हवेइ मुत्ती चागं विणा व जणस्स सत्ता। चागो हि लोगोत्तरमत्यि तत्त चागं विणा णेव रागस्स हाणी ॥३६।। आणंद - चितमय-सुहारस-पाणतित्ता __ सुद्धोवयोग--महिमाणमुवागओ च । केवल्ल-णाण-भरिय-जण-धाम-धण्णो पप्पेइ पवित्तितजगं परमप्पराआ ॥३७॥ रे चित्त किं भाससि भूरिविकप्पजाले कज्ज करय तव समत्थि भवंधकूवे । प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jan Éducation International Yer Private & Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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