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________________ Jain Education International सम्झी - रयण- सिरी- कुसुमवई लोगप्पगासण जुत्त कंतिमय सरूवं, देवेहि थुया विगय कम्ममलामहेस, पणमामि अहं णिच्चं सम्म सुबोहं सयं -डॉ० उदयचन्द्र जैन, ( पिऊ कुञ्ज ३), अरविन्द नगर, उदयपुर जाणाराहणकरणं सतत - समथ्यं । रायट्ठाण - पमुह - णयर - अई खणण --संपदा संपण्णो । वरो पुरो उदयपुरो सुसोहइ णिसग्ग- सुन्दरं ॥ ३॥ उदयपुर मंडलंतर कोठारी परिवारो वंदे च संमइ - भगवच्चरणारविंदं ॥ १ ॥ वीराण कित्तिगाहा विथिण्णा जस्स गिरि-कंदरेसु अवि । मेवाणणामधेया अजेयजोधा तह पसिद्धा ||४|| दोलत मलकोठारी दो पुत्त एगपुती प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंना मणुण्ण - रूव -- कमणीय - - सिहरावली - - - आरावली - गिरी । जस्स सुमज्झभागम्मि सुरम्म - रम्म- कलकलंत - झीला वि ॥५॥ संसार- सायर-तरणं तरणि व्व । पुण्णतित्थ भव-करण - णासणं ॥२॥ जह वीर - पसूयभूमि तह संजम - अजस्सधारा वि । वीर - अज्झप्प-उद्या संगमथली मेवाभूमी ||६|| सम्मभावाराहणं अरहभत्ती जुत्ता देलवाला अईसुरम्मगामा | तस्सिं सिद्धधम्मणिट्ठी ||७|| माणियवाई | अवि ||८|| अस्सिं यरम्भि एव एगो कुलसेट्ठी गणेसमलो । तस्स भज्जा धम्मिगा सुसाविगा धम्माराहिगा || || तस्स भज्जा जाया धमाणुरागी संघसेवा - गुणीणं सिद्धा । तु णं कम्ममल-दलणं पयत्ता ॥ १०॥ एगा पुत्ती जाया सिरिमइ - सोहणकुवरकुक्खीए । माया - पिउ - अइपिया, सुकुलभूसणा बालिगा सा ॥ ११ ॥ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only ६७ www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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