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________________ करुणामति—अभिवंदन क्रोध भी पराजित सम्मुख तुम्हारे, -कन्हैयालाल गौड़, उज्जैन देख चकित मन, शांति प्रेम करुणा की, RL ओ अध्यात्मयोगिनी, साक्षात् प्रतिमूर्ति, तुम बहुगुणी, जीवन में संकल्पों की दृढता, गुरुभक्त विनयशील, गति और निर्भयता उर सिन्धु सा विशाल, मंगलमय, उच्च ललाट, दीक्षा स्वर्ण जयन्ति पर, दिव्य भाल, दीर्घायु की करता हूँ, दृष्टि बहुजन हिताय अंतस से कामना, स्वांतः सुखाय तुम्हारे आदर्श वाणी में ओजस्विता, जग पूजित हो, उर में अति आत्मीयता, मन में उदय हो, प्रकृति शांत धर्मरत जीवन, विश्व बन्धुत्व की भावना महके सुमन-सुरभित पवन -श्रीमती विजयलक्ष्मी, उदयपुर 'कुसुम'-'कुसुम' कह महक उठा आज हरेक उपवन । महासती तूम महातपस्विनी है निर्झर सा मन ।। सात सितम्बर सन पच्चीस का सखद वह सोमवार मात-पिता के हर्ष का जब रहा ना परावार पूर्व जन्म के संचित फल से होते तब दर्शन । आई हो कुछ सार खोजने इस असार संसार में। जान लिया छुटपन में ही कि सुख है जन उपकार में । अध्यात्म क्षेत्र में कर पदार्पण किया है नव सृजन। जीवन में साधना प्रचुर औ' वाणी में है ओज । निकल पडी जन-जन में करने भक्ति-भाव की खोज । जहाँ गई हो वहाँ सभी का मिट जाता क्रन्दन।। चिन्तन में गहराई, सेवा सत्य शील आधार । करने लगी जगह-जगह पर ज्ञान का नवल प्रसार । प्रवचन प्रभाव से जन-जन की मिट जाती भटकन। ज्ञान विविध भाषाओं का व्यक्तित्व सहज सरल । गंगा-सम निसृत तव वाणी वहती है अविरल । 'अध्यात्मयोगिनी' बन कष्टों का करती आप शमन | अर्द्ध शताब्दी हुई अध्यात्म में लगी लिये लगन । है शुभकामना यही कि चलती रहे सुगन्ध पवन । योग-क्षेम सत्य शील पुजारिन बारम्बार नमन। | प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ AR Jain Education Internationar For Private & Personal lise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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