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________________ जैनाचार्य से कम नहीं -युवा कवि धर्मेश छाजेड़, सूरत ज्यों ही, वैसे भी हिन्दुस्तान में कागज, गुरुणी जी के अभिनन्दन ग्रन्थ छपने का, पर्याप्त मात्रा में नहीं है, समाचार पाया, इसलिए मैंने गुरुणी जी के गुणगान लिखने का शुरुणी जी के गुणगान लिखने का मन में विचार आया विचार छोड़ दिया एक दिन गुरुणी जी के गुणणान लिखने का अपनी लेखनी को मैंने अभ्यास किया हास्य-व्यंग की ओर मोड़ दिया एक छोटा-सा कागज का टुकड़ा लेकर गुरुणी जी को, कविता लिखने का प्रयास किया किसो ने 'मेवाड़सिंहनी' के नाम से विभूषित मगर, किया समस्या यहाँ आकर खड़ी हो गई कि किसी ने 'अध्यात्मयोगिनी' के नाम से गुरुणीजी के गुणगान की रूपरेखा बड़ी हो गई शोभित किया जैसे कि द्रौपदी का चीर किसी ने 'काश्मीर प्रचारिका' नाम से पुकारा, मैंने सोचा, किसी ने 'प्रवचन भूषण' इनका नाम दिया अगर गुणगान लिखने जाऊंगा मगर धर्मेश छाजेड़ में तो, तो लिखते-लिखते बूढ़ा हो जाऊंगा इतनी उपाधि से विभ षित करने का दम फिर भी गुणगान नहीं लिख पाऊँगा नहीं है और तो और गुरुणी के गुणगान नहीं लिख पाया इतनी कलम कहाँ से लाऊंगा इसका भी मुझे कोई गम नहीं है इतनी स्याही कहाँ से लाऊंगा लेकिन गुरुणी कुसुमवती जी इतने कागज कहाँ से लाऊंगा किसी जैनाचार्य से कम नहीं है । मेरी कविता यही है, तप की देवी को है वन्दन....... -युवाकवि-गीतकार हरीश व्यास, प्रतापगढ़ ममतामयी त्याग और तप देवी को है वन्दन, तन काशी सा तीर्थ लगे है मन जैसे वृन्दावन। शतशत नमन करू तुमको और बार-बार अभिनदंन । धन्य हुआ मेवाड़ 'उदयपुर' 'कुसुमवती' को पाकर सात सितम्बर उन्नीस सौ पच्चीस को जन्म था पाया 'अध्यात्मयोगिनी"प्रवचन-भूषण' महासती को पाकर मात-पिता 'कैलाशकंवर' 'गणेश' का मन हर्षाया जिनधर्म की बावरी मीरा बनी नैन का अंजन। देलवाड़ा में दीक्षा पाकर तोडा जग से बन्धन"] 'दिव्य प्रभा' ने दिव्यज्ञान से गुरु का मान बढ़ाया जन्म नाम था 'नजरकंवर' और 'कुसुम' हुई दीक्षा से सजन से 'गरिमा' ने जीवन के मर्म का अलख जगाय 'सोहनकॅवर' का आशीष पाया लक्ष्य मिला शिक्षा से 'अनुपमा' और 'निरुपमा' की वाणी निर्मल कंचन"। ज्ञान की सौरभ घर-घर फैली जैसे महके चन्दन । स्वस्थ दीर्घ जीवन हो बस अन्तस की यही दुआ है 'पुष्कर मुनि' से गुरुवर जिसके श्रमण संघ की जान आशीर्वाद का साया बना रहे बस यही दुआ है पथ आलोकित हुआ मिला इस जीवन को बह्मज्ञान दीक्षा के पचास बरस पर मेरा अनुनय वंदन । प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना OMG साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थORGB) Jan education Internationale Sr Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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