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________________ खिला कुसुम जग बगिया में - कवि श्रणीदान चारण, बीकानेर एक कुसुम खिला जग बगिया में जो सब सुमनों से न्यारा है वो और नहीं है कुसुमवती जो जैन धर्म उजियारा है । श्वेत वसन धारित तन है गंगा जल सा पावन मन है कोई चाह नहीं जिनको जग से बस एक अहिंसा ही धन है हिमगिरि सा ऊँचा चिन्तन है सागर सम जिनकी गहराई मधु सा मिठास ले वाणी में देने उपदेश हमें आई । संयम पथ कितना दुष्कर है ये हम सांसारिक क्या जाने विरले ही आगे आते हैं इस कंटक पथ को अपनाने । - जिसने सांसारिक मोह त्यागा संयम पथ को ही अपनाया कुछ चाह नहीं रखी जन में बस महावीर का मग भाया । हरने को जग का अंधियारा अब ज्ञान सुधा जो बाँट रही ज्ञान की गंगा बन बहती अज्ञान अंधेरा छाँट रही । इस गंगा को बहते - बहते आधा युग पार उतरता है दर्शन की चाह लिए चारण इन्हें शत-शत वन्दन करता है । प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंना Jain Education International कुसुम नाम वह प्यारा है - वैरागन गुणमाला चपलोत श्रमण संघ की बगिया में खिला पुष्प एक न्यारा है । सारा संघ जिससे है सुरभित 'कुसुम' नाम वह प्यारा है । में ही बनी साधिका लघुवय वीर का पथ अपना करके । करुणामयी देवी कहलाई सब जन के दुःख हर करके । देश के हर कोने में जाकर जन-जीवन को मोड़ दिया । महावीर सन्देश सुना कर धर्म से जन को जोड़ दिया । व्याख्यानों की छटा निराली झम-झूम मन जाता है । 'प्रवचन - भूषण' इसीलिए तो जग सारा ही गाता है । चन्दा सम जीवन है शीतल तेज सूर्य-सा लगता है । वाणी में है ओज अनोखा सुन लेता सो जगता है । शिव्याएँ हैं सभी आपकी एक से बढ़कर एक महान । चारित्र, दिव्या और गरिमा चमक रही हैं बीच जहान । ज्ञान-ध्यान त्याग और तप से जीवन दिव्य बनाया है । त्याग और सेवा की मूर्ति गुण गाये ना जाया है । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती आई करे आपका अभिनन्दन । ममतामयी हे ! गुरुणी मैया श्रद्धा से शत-शत वन्दन । साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only τε कन्न www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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