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________________ මෙම මෙම මම सेवा की साक्षात् मूर्ति युग युग जीयें -उम्मेदमल जैन, जयपुर -कमल मेहता, अलवर । परमादरणीया महासती श्री कुसुमवती जी म० भारतभूमि कर्मभूमि ही नहीं धर्मभूमि भी स्थानकवासी जैन समाज की एक सुप्रसिद्ध साध्वी रही है, इस रत्न प्रसूता वसुन्धरा ने समय-समय रत्न हैं, आपके प्रवचनों में दीन दुःखियों के लिए पर अनेक रत्न उत्पन्न किए हैं। उन्हीं रत्नों में एक IN उदारता पूर्वक दान देने की प्रेरणा रहती है रत्न है मेरी आस्था के केन्द्र पूज्या साध्वी श्री कुसुमवतीजी म०। आपका दिव्य सान्निध्य मुझे सर्व लाखों आते लाखों जाते, प्रथम सन् १९८० के अलवर वर्षावास के दौरान दुनिया में वो निशानी है। प्राप्त हआ और आपके व्यक्तित्व से मैं इतना प्रभाजिसने दुःखियों की सेवा की, वित हआ कि आज भी मंगलमूर्ति जब-जब भी आपकी मेरे आंखों के सामने तैरती रहती है । और उसकी अमर कहानी है। मेरा मन श्रद्धा से नतमस्तक हो उठता है। अगर आप दीन-दुःखियों की सहायता करेंगे, ___आपका दिव्य जीवन साध्वोचित गुणों से युक्त, तो आपके जीवन में सभी प्रकार की शान्ति बनी प्रदर्शन से दूर सुमेरु सदृश उच्च भेद भाव रहित रहेगी। और गंगाजी के सलिल के समान शीतल शुद्ध व __ जयपुर चातुर्मास में आपके इन उपदेशों से निर्विकार है। दया क्षमा आर्जव लाघव आदि मेरे हृदय में भी सेवाकार्य की भावना जगी और अनेकों गुणों की आप साक्षात् प्रतिमूर्ति है, आपका || जब भी मैं किसी असहाय को, दीन-दुःखियारे को जीवन महाकवि कालिदास रचित रघुवंश की निम्न आपके समीप ले गया तब आप उदारतापूर्वक पंक्तियों में सर्वथा चरितार्थ हो रहा हैश्रावकों को प्रेरणा देकर उसके लिए अन्न, वस्त्र, दवा आदि का कार्य करवा देते हैं। महात्मा गांधी आकार सहशः प्रज्ञः, प्रज्ञया सदृशागमः । ने एक स्थान पर लिखा है-सेवा मनुष्य का सब आगमे समारम्भः, आरम्भः सदृशोदयः ।। से बड़ा गुण है-दूसरे मनुष्य या मनुष्यों को शांति A पहुँचाने के लिए जो काम किया जाता है वही मेरी अर्थात् आपका जीवन आकार के समान प्रज्ञादृष्टि से उत्तम सेवा है। वाला, प्रज्ञा के सदृश आगमों के अध्ययन से युक्त । __ सेवा की ऐसी साक्षात् मूर्ति साध्वी जी म. के आगमानुकूल आचार वाला है। इस दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर मैं अपनी ऐसे महान व्यक्तित्व कृतित्व की धनी साध्वी ओर से और भगवान महावीर विकलांग समिति जी म० को अन्तःकरण से शतशः नमन वन्दन अभिजयपुर के समस्त सदस्यों की ओर से शतशः वन्दन नन्दन करता हूँ। अभिनन्दन करता हूँ और प्रभु से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप दीर्घजीवी होकर हमें सदा मार्ग दर्शन प्रदान करते रहें। Com प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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