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________________ चरणों में वंदन सहज स्वाभाविक रूप में विद्यमान हैं। आगमों एवं दर्शनशास्त्र की आप कुशल व्याख्याता हैं। वीतराग ~आनन्दीलाल मेहता, उदयपुर विज्ञान की दिव्य ज्योति आपश्री के असंख्य प्रदेशों से निरन्तर प्रवाहित होती रही है। मैं विशेष किस अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि परम विदुषी उपमा से आपको उपमित करू। आप चन्दनबाला 0 जिनशासन की प्रभाविका साध्वीरत्न श्री कुसुमवती श्रमणी संघ की प्रथम प्रवर्तिनी महान् साध्वीरत्न | जी म० सा० के ५० वर्ष के दीर्घ दीक्षाकाल के उप- श्री सोहनकुंवर जी म० सा० की साक्षात् प्रतिमूर्ति लक्ष में समाज की ओर से आपश्री का अभिनन्दन हैं। करने हेतु एक कुसम अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित । महासतीजी का अभिनन्दन किन्हीं शब्दों, किया जा रहा है। भाषणों अथवा ग्रन्थों से करना उनकी तेजोमय महासतीजी से मेरा निकट का परिचय तब प्रतिमा को दीपक दिखाने के समान निरर्थक है। हुआ जब मैं सन् १६५७ में डबोक चातुर्मास में उनके मेरी यह शुभ भावना है। आपश्री दीर्घकाल तक ||८ दर्शनार्थ गया था और उनकी अमृतमय मधुरवाणी स्वस्थ रहकर अपने ज्ञान-गरिमा की दिव्य किरणों K का रसास्वादन करते हुए डबोकवासियों ते हुए डबोकवासियों को मैने से जन-जन के हृदय में रहे हए अज्ञान अन्धकार को KE यह प्रेरणा प्रदान की थी कि ऐसी जानमूर्ति चारित्र दर करते रहें और आप स्वयं वीतराग साधना के आत्मा का अनन्त-अनन्त पुण्योदय से आपके यहाँ द्वारा अपने चरम लक्ष्य (सिद्धि) को प्राप्त करें। चातुर्मास हुआ है । अतः इस चातुर्मास की यादगार इन्हीं शब्दों के साथ यह भावात्मक श्रद्धा सुमन | को चिरस्थायी बनाने एवं बालक-बालिकाओं में आपश्री के चरणों में समर्पित करता हआ विराम | । धार्मिक ज्ञान का बीजारोपण करने तथा जैनत्व के | सुसंस्कारों का निर्माण करने हेतु एक ज्ञानशाला की भव्य स्थापना की जाय। मेरी इस प्रेरणा में मुझको ही इस महान कार्य का निर्माता चुन लिया। पूज्या महासती जी एवं श्रीसंघ डबोक के आग्रह सद्कामनाएँ को मैं टाल नहीं सका । मैंने इसी विभूति से आशीर्वाद प्राप्त कर १८ वर्ष तक प्रति रविवार को निः -प्रो. अमरनाथ पाण्डेय, वाराणसी शुल्क रूप से डबोक में पाठशाला चलाई जिसमें कई बालक-बालिकाओं ने सामायिक, प्रतिक्रमण, आदरणीया श्री कुसुमवतीजी की संयम-यात्रा प्रवेशिका, प्रथमा तथा जैन सिद्धान्त विशारद तक की अर्द्ध शताब्दी की पूर्ति के अवसर पर मेरी की परीक्षायें श्री तिलोकरत्न स्थानकवासी जैन वधाई। उनका जीवन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण धार्मिक परीक्षा बोर्ड पाथर्डी (अहमदनगर) से रहा है और साधना के क्षेत्र में विशेष अभिनन्दनीय सम्पन्न की और आज तक भी वह जैनशाला किसी है। न किसी रूप में अपने उद्देश्य की पूर्ति करने का उन्होंने दर्शन और संस्कृति का विशेष शृंगार सफल प्रयास कर रही है। किया है और अपनी तपस्या से अनेक गूढ़ रहस्यों .. ___महासतीजी श्री कुसुमवती को मैंने बहत निकट का भी प्रकाशन किया है । से देखा और परखा। आपमें सरलता, सहिष्णुता, विनय, सेवा एवं मधुरभाषिता आदि अनेकों गुण ७४ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 6 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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