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________________ -... -- +- -...--- प्रकाशककेबोल आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से अन्तिम पावन चरणों में समर्पित करने का निर्णय लिया पात्र तीर्थकर विश्ववन्द्य भगवान महावीर तक तथा वर्त- गया। मान काल तक जैन धर्म में साध्वी परम्परा अक्षुण्ण कोई भी साधक, तपस्वी, संयमनिष्ठ साधु है । उस साध्वी परम्परा में अनेक ऐसी साध्वियाँ साध्वी इस प्रकार के गुणानुवाद की इच्छा नहीं , हुई हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान और संयम साधना के करता है । वह तो अपनी साधना में तल्लीन रहकर 2 उच्चतम आदर्श स्थापित किये हैं और अनेक भव्य जो कुछ भी वह प्राप्त करता है, अपने भक्तों में जीवों को प्रतिबोध देकर उनका मार्ग प्रशस्त किया मुक्तहस्त से वितरित कर देता है। वह प्रदान करने है। किन्तु खेद का विषय है कि साध्वीरत्नों का में पूर्ण सन्तोष का अनुभव करता है। उज्ज्वल पक्ष होते हुए भी उनका विस्तृत एवं क्रम- महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. का व्यक्तित्व - बद्ध इतिवृत्त उपलब्ध नहीं होता, जिससे हम जैन भी इसी प्रकार का है। वे सचमुच कुसुमवत् ही । इतिहास के एक महान् पक्ष की जानकारी से वंचित हैं। जिस प्रकार पूष्प अपनी सौरभ से समचे उपवन ) रह गये। को महका देता है। ठीक उसी प्रकार आपके प्राचीनकालिक साध्वी परम्परा क्रमबद्ध रूप व्यक्तित्व की समाज में अमिट छाप स्पष्ट दिखाई से न मिलने के लिए जहाँ हमें खेद है वहीं आज हमें दे रही है । उनके संयम की सौरभ चहुँ ओर बिखर इस बात के लिए प्रसन्नता और कुछ मात्रा में रही है। यही कारण है कि वे आज जन-जन की हसन्तोष हो रहा है कि आज इस दिशा में उल्लेख- श्रद्धा का केन्द्र बनी हुई हैं। नीय कार्य होने लगे हैं । इसी अनुक्रम में यह उल्लेख ऐसी संयमनिष्ठा महासती जी का अभिनन्दन करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि करना उनकी शिष्याओं और अनुयायियों का परम। आचार्य भगवंत श्री अमरसिंह जी म. सा. की पनीत कर्तव्य हो जाता है। अभिनन्दन ग्रन्थ के परम्परा की परम विदुषी, सरल स्वभाषी, मृदुभाषी, माध्यम से अपनी भावना अभिव्यक्त की जाती है । मितभाषी, निरभिमानी साध्वीरत्न बाल ब्रह्म- अभिनन्दन ग्रन्थ के माध्यम से अनेक नई बातें प्रकट १ चारिणी परमविदुषी महासती श्री कुसुमवतीजी हो जाती हैं। कारण कि अभिनन्दन ग्रन्थों में मूर्धन्य म. सा. की दीक्षा स्वर्ण जयन्ति के उपलक्ष्य में उनके मनीषियों द्वारा लिखित विचारपरक, शोधपरक सम्मानार्थ अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर उनके एवं चिन्तन प्रधान रचनाओं का संग्रह होता है जो साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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