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________________ પૂજ્ય ગુરૂદેવ કવિવય પં. નાનચન્દ્રજી મહારાજ જન મશતાહિદ સ્મૃતિગ્રંથ पारस्परिक संबंध को लोकप्रसिद्ध अंध पंगु न्याय के आधार पर स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चलता है या अकेला अंधा अथवा अकेला पंगु इच्छित साध्य को नहीं पहुंचते वैसे ही मात्र ज्ञान अथवा मात्र क्रिया से मुक्ति नहीं होती । अपितु दोनों के सहयोग से ही मुक्ति होती है । जैन दर्शन का यह दृष्टिकोण हमें कठोपनिषद और बौद्ध परम्परा में भी प्राप्त होता है। बुद्ध कहते हैं जो ज्ञान और आचरण दोनों से समन्वित है वही देवताओं और मनुष्यों में श्रेष्ठ है । सन्दर्भ सूचि १. तत्त्वार्थ सूत्र ११ २. उत्तराध्ययन सूत्र २८०२ ३. सुत्तनिपात २८८ ४. गीता ४।३४, ४।३९ ५. Psychology and Morals P. 180 ६. उत्तराध्ययन २८१३० ७. Some problems of Jain Psychology P. 32. ८. अभिधान राजेन्द्र, खण्ड ५ पृ. २४२५ ९. तत्त्वार्थ १।२, उत्तराध्यन २८।३५ १०. सामायिक सूत्र - सम्यक्त्वपाठ ११. जैन धर्म का प्राण पृ. २४ १२. सूत्रकृतांग १।१।२।२३ १३. समयसार टीका १३२ १४. देखिये - समय सार ३९२-४०७ नियमसार ७५ - ८१ तुलनीय संयुक्तनिकाय ३४।१।१।१-१२ १५. प्रवचनसार १७,पंचास्तिकायसार १०७ १६. उत्तराध्ययन २८१३० १७. तत्त्वार्थ सूत्र १११ १८. दर्शन पाहुड २ १९. उत्तराध्ययन सूत्र २८१३५ २०. उत्तराध्ययन २३।३५ २१. सुत्तनिपात १०२ २२. सुत्तनिपात १०६, तुलनीय गीता ४१३९ २३. संयुक्तनिकाय १।११५९ २४. संयुक्तनिकाय ४।४१।८ २५. विसुद्धिमग्ग ४।४७ २६. भक्तपरिज्ञा ६५-६६ २७. आचारांग नियुक्ति २२१ २८. दशवकालिक ४११२ २९. उत्तराध्ययन २८.३० ३०. समयसार टीका १५३ तुलनीय गीता शांकरभाष्य अध्याय ५ की पीठिका ३१. सूत्रकृतांग २०१७ ३२. उत्तराध्ययन ६।९-११ ३३. आवश्यक नियुक्ति ९५-१०२ तुलनीय - नृसिंह पुराण ६१।९।११ ३४. मज्झिमनिकाय २।३।५ जैन दर्शन का त्रिविध साधना मागे Jain Education International ३७१ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.012031
Book TitleNanchandji Maharaj Janma Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChunilalmuni
PublisherVardhaman Sthanakwasi Jain Shravak Sangh Matunga Mumbai
Publication Year
Total Pages856
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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