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________________ - आचार्य महासती श्री चन्दनाजी महाराज ऐसी हो नींव, उत्कर्ष के शिखरों की ज्ञान अमृत है और वह हर आत्मा में विद्यमान है। वस्तुत: ज्ञान ही आत्मप्रतीति है। आत्मप्रतीति से संवेदनशीलता और संवेदनशीलता से उपजती है अहिंसा, अनुकम्पा, करुणा, मैत्री एवं सह-अस्तित्व की भावना। इनकी विराटता जीवन का चरम उत्कर्ष है। अत: मानव जाति की विकास यात्रा उसकी ज्ञान विकास की यात्रा से आन्तरिक रूप से संबंधित है। ज्ञान का विकास मानव जीवन का विकास है। जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। अध्यात्म, कला, व्यापार, खेती, विज्ञान आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में शिक्षार्थी बनकर ही प्रवेश पाना होता है। आजीविका के सभी साधन, अभिरुचियों के नये आयाम, रचनाधर्मिता के नये कीर्तिमान शिक्षा के बिना निर्जीव हैं, निष्प्राण हैं। निष्प्राण कर्म करना, जीवन के लिए सबसे बड़ा भार ढोना है। जीवन रसपूर्ण सजीवता से भर जाए और रसपूर्ण सजीवता सृजनशक्ति का केन्द्र बने, यही हेतु है शिक्षा प्राप्ति के लिए संचालित संस्थानों का।। विद्यालय एक ऐसा शुभंकर संस्थान है, जहां विद्यार्थी सहस्त्रों की संख्या में एक साथ धर्म, जाति, वर्ग से ऊपर उठकर “एगामनुस्स जाई" मनुष्य जाति एक है की उदात्त भावना से ज्ञानाराधना करते हैं। प्राचीन काल के गुरुकुल हों अथवा आज के विद्यालय इनके उद्देश्यों में कोई अन्तर नहीं है। बदलाव जो आया है वह शिक्षापद्धति में, शिक्षा के साधनों में, स्थान, परिवेश एवं व्यवस्था में आया है। किन्तु शिक्षार्थी जो ज्ञान पिपासु है, जिज्ञासु है उसकी चित्तवृत्तियों में अर्थात् शिक्षार्थी को कैसा होना चाहिए, इस संबंध में चिन्तन न तब बदला था न अब। जीवन का प्रथम चरण जीवन का प्रारम्भिक समय ज्ञान की आराधना के लिए समर्पित है। जीवन के प्रारम्भ का समय जीवन के उत्कर्ष की नींव है, बुनियाद है। नींव कितनी मजबूत, सुस्थिर होनी चाहिए उत्कर्षों के गगनचुम्बी शिखरों के लिए? यह आज भी विचारणीय विषय है और प्राचीन युग में भी था। तीर्थंकर भगवान महावीर की धर्मदेशना शिक्षार्थी के जीवन के स्वर्णकाल को समलंकृत करती है। उत्तराध्ययन सूत्र का ।।वां अध्ययन बहुश्रुत पूजा के नाम से सुविदित है। उसमें उल्लिखित सभी सूक्त मनुष्य जीवन की समग्र संभावनाओं को प्रस्फुटित करने वाला संगठित विधान है। विलक्षण प्रतिभाएं उजागर होती हैं तब जीवन-दीप का ज्ञान-प्रकाश जगत को आलोक से भर देता है। उसी की प्रतिभा उजागर होती है, जो शिक्षाशील है। अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चइ। अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे।। णा सीले ण विसीले, ण सिया अइलोलुए। अक्कोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुच्चड़। __ जो हंसी-मजाक (व्यंग) नहीं करता है, जो दान्त, शान्त रहता है, जो किसी का मर्म (रहस्य) प्रकाशित नहीं करता है, जो आचरणहीन न हो, जो दोषों से कलंकित न हो, जो क्रोध न करता हो, जो सत्य में अनुरक्त हो- इन आठ गुणों से व्यक्ति शिक्षाशील होता है। इसी प्रकार पन्द्रह कारणों से सुविनीत कहलाता है। और विनीत को ज्ञान प्राप्त होता है- 'विद्या ददाति विनयं ।' नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुतूहले, अप्पं च हिक्खिवइ पबन्धं च न कुव्वइ। मित्तिजमाणो भयइ सुयं लभु न मज्जइ। न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पइ अप्पियस्सवि मित्तस्स रहे कल्लाण भासइ॥ कलह डमरवजिए, बुद्धेय अभिजाइए। हिरिमं पडिसंहलीणे, सुविणीएत्ति वुच्चइ। ___ जो नम्र है, अचपल एवं अस्थिर नहीं है, दम्भी नहीं है, तमाशबीन नहीं है, किसी की निन्दा नहीं करता है, जो क्रोध लम्बे समय तक पकड़ कर नहीं रखता, जो मित्रों के प्रति कृतज्ञ है, ज्ञान प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता है। गल्ती होने पर दूसरों का तिरस्कार नहीं करता है, मित्रों पर क्रोध नहीं करता है। जो वाक्, कलह एवं हाथापाई नहीं करता है। कुलीन है, लज्जाशील है, व्यर्थ चेष्टा नहीं करता है वह बुद्धिमान मान प्राप्त करने में तल्लीन रहता है। "पियंकरे पियवाई" जो प्रिय करने वाला और प्रियभाषी है, वह ज्ञान प्राप्त करता है। एक प्रकार से विद्यार्थी जीवन की यह आचार संहिता है। जो ज्ञान साधना में उक्त गुणों को आत्मसात् किये हुए है, वह स्वयं प्रज्ञापुंज बनेगा। उक्त चिन्तन के आलोक में विद्यार्थियों के जीवन संस्कारों को विकसित, पल्लवित, पुष्पित करने में सुविज्ञ अध्यापकों के साथ-साथ समाज के वरेण्य कार्यकर्ताओं का स्नेह संबन्ध भी विद्यालय के और विद्यार्थियों के भविष्य को ज्योतिर्मय बनाता है। -वीरायतन, राजगीर हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड /१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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