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________________ रिखबदास भंसाली विकास एवं उन्नयन का मूल मंत्र : निष्काम सेवा एवं साधना श्री जैन विद्यालय की हीरक जयन्ती के पावन प्रसंग पर मैं नमन करता हूं एवं श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं उन संस्थापकों को जिन्होंने साधना, शिक्षा और सेवा का संकल्प लेकर इस विद्यालय की स्थापना की जो आज वट वृक्ष के रूप में हमारे समक्ष विद्यमान है। न जाने कितने मनीषी, समाज सेवी, चिंतक, लेखक, डाक्टर एवं वैज्ञानिक इस संस्था की प्रारम्भिक देन रहे हैं। मैं भी विद्यालय की गतिविधियों से विगत 37 वर्षों से जुड़ा हुआ हूं एवं स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मुझे मेरी प्रारम्भिक शिक्षा भी इसी विद्यालय से प्राप्त हुई। स्वप्न में भी मैंने यह नहीं सोचा था कि महायुद्ध की विभीषिका में भी यह विद्यालय कायम रह पायेगा। किन्तु निष्काम सेवा भावना और सहयोग से जिस संस्था की नींव रखी गई हो उसका कभी विनाश नहीं होता। जिस संस्था का सृजन ही अहम् से परे रहकर हुआ हो, उसका विघटन कभी संभव नहीं। सन् 1946 से मैं विद्यालय की प्रबन्ध समिति से नियमित रूप से जुड़ा हुआ हूं। यहां पूर्ण सद्भावना का वातावरण पूर्वजों के आशीर्वाद से इस संस्था को प्राप्त है। सम्प्रति 2400 छात्र सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र के आधार पर यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र का और अधिक प्रसार एवं विस्तार हो, इस हेतु सभा की हीरक जयन्ती के पावन प्रसंग पर यह संकल्प लिया गया कि एक और विद्यालय की स्थापना की जाय। समाज का सहयोग एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ एवं 10 माह की स्वल्प अवधि में हवड़ा में एक नवनिर्मित भवन विधिवत् विद्यालय का रूप लेकर उपस्थित हुआ एवं तीन वर्ष की अल्प अवधि में ही पश्चिम बंग शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त कर 2300 छात्र एवं छात्राओं को समुचित शिक्षा प्रदान कर रहा है। कम्प्यूटर शिक्षण जो आज के युग में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है, वह भी यहां प्रदान किया जा रहा है। __संस्था को स्थापित करना सहज है किन्तु आवश्यकता पड़ती है इसे सुचारु रूप से शालीनता पूर्वक चलाने की। एक पीढ़ी हमारी आंखों से ओझल हो गई एवं दूसरी पीढ़ी भी शिथिलता महसूस करने लगी है। दायित्व आता है समाज की युवा शक्ति पर जो आज हर कार्य करने में सक्षम है। हीरक जयन्ती के इस पावन प्रसंग पर उनका आह्वान करता हूं कि वे अपने दायित्व को समझें एवं प्रामाणिकता के साथ निष्काम भाव से इसे संभालें। ___ हर व्यक्ति समाज का ऋणी है और ऋण चुकाने के लिए आवश्यकता है निष्काम सेवा भावना की एवं लगन की। मुझे पूर्ण विश्वास है कि समाज का कोई भी वर्ग अभी भी कर्तव्यच्युत नहीं है एवं पूर्वजों की इस अमानत के, धरोहर के सतत विकास एवं उन्नयन में सदैव सहयोग प्रदान करेगा। मैं विद्यालय परिवार के सभी सदस्यों से भी अनुरोध करूंगा कि जिस निष्ठा के साथ आप सभी ने बच्चों के चरित्र निर्माण में सहयोग प्रदान कर उनका भविष्य उज्ज्वल किया है, वही आशीर्वाद भविष्य में भी उन्हें प्रदान करते रहेंगे। यही मेरी शुभकामना है। -अध्यक्ष, श्री श्वे0 स्था0 जैन सभा, कलकत्ता हीरक जयन्ती स्मारिका विद्यालय खण्ड /४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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