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________________ सूरजमल बच्छावत बात की बात में संस्था बनी बहुत अर्से, करीब 70 वर्ष पूर्व की बात है, जैन समाज की एक सभा हो रही थी उसमें एक सज्जन ने मजाक में कह दिया कि स्थानकवासी समाज का यहां क्या है ? हमारे मन्दिर हैं, उपाश्रय हैं, धर्मशाला हैं। यह बात मेरे पूज्य पिता श्री स्व0 फूसराज बच्छावत को बड़ी बुरी लगी और उसी समय उन्होंने निश्चय किया कि जब तक कलकत्ता में एक संस्था स्थापित नहीं करेंगे तब तक चैन से नहीं रहूंगा। उन्होंने मेरे काकाजी श्री नेमचन्दजी को बुलाया और कहा कि तुम पढ़े-लिखे हो, एक संस्था खड़ी करना है। बात आगे बढ़ी और । नम्बर पांचागली में उदयचंदजी डागा की गद्दी खाली थी, वह उनसे मिल गई और वहीं से संस्था के गठन का काम शुरू करने का विचार तय हुआ । पहिले संवत्सरी प्रतिक्रमण किन्हीं मेम्बरों की गद्दी में हुआ करता था। यह जगह हो जाने से लोगों का सहयोग मिलने लगा श्री सुजानमलजी रांका, श्री मुनालालजी रांका, श्री ईश्वरदासजी छल्लाणी, श्री रावतमलजी बोथरा, श्री भैरूंदानजी गोलछा, श्री किशनलाल जी कांकरिया, श्री तोलारामजी मिन्त्री, श्री जानकीदासजी मिश्री, श्री चांदरतनजी मित्री श्री अभयराजजी बच्छावत, श्री बदनमलजी बांठिया, श्री सौभागमलजी डागा आदि। प्रत्येक रविवार को एक सभा होने लगी जिसमें गुजराती भाई श्री मीदास का बहुत बड़ा सहयोग था । वे शास्त्रों के जानकार थे। इस प्रकार कुछ वर्षों बाद सभा ने एक विद्यालय प्रारम्भ करने का निश्चय किया। एक अध्यापक श्री बच्चन सिंहजी की नियुक्ति की। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई और अध्यापकों की नियुक्तियां की गई। हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International बिहार में भूकम्प हुआ उसमें सभा के सदस्य गण खाद्य सामग्री, कम्बल आदि लेकर गये एवं पीड़ितों में उसका वितरण किया गया। इसी बीच मोहनलाल गली सुतापट्टी में एक मकान खरीदा गया उसमें 5-6 कक्षा तक पढ़ाई होने लगी। बड़ी जगह लेने की सदस्यों की प्रबल इच्छा थी। इसी बीच फू जयंतिलालजी महाराज का चौमासा हुआ और व्याख्यान में सब लोग आने-जाने लगे। गुजराती भाइयों से प्रेम बढ़ा। हमलोगों ने एक दिन प्रभुदास भाई भवानीपुर वालों से बात की। उन्होंने हमें भवानीपुर बुलाया में और श्री हरकचंदजी कांकरिया दोनों उनसे मिलने गये। प्रभुदास भाई के मित्र की एक जगह थी मनमोहन भाई की। उन्होंने उनको बुलाया और जगह की बात पक्की की। करीब 8 कट्ठा जमीन थी। हमलोगों ने कहा कि हमारे पास इतनी रकम तो होगी नहीं। उन्होंने कहा कि 25000 रुपया बिना ब्याज के बाकी रहेंगे। क्यों घबड़ाते हो, करो पक्का हमने बात पक्की कर ली। फिर लोगों से चेष्टा करने लगे। बहुत खुशी समाज में छा गई और जमीन की रजिस्ट्री भी हो गई। इसके बाद मनमोहन भाई ने करीब 8 कट्ठा जमीन मगनमल जी पारख को बेचने का नक्की किया। हमें जब मालूम हुआ तो हमलोगों ने मनमोहन भाई से कहा कि यह जमीन आप हमें दे देवें। हमें तो स्कूल बनाना है। हम लोगों ने मगनमलजी पारख के पास जाकर उनसे वह सौदा सभा के नाम से करवाने की स्वीकृति ले ली। इस तरह से करीब 17 कट्ठा जमीन हो गई। विद्यालय भवन की नींव लगा दी गई। और काम जोरों से होने लगा। एक साल में बगल का हिस्सा बन गया और विद्यालय चालू हो गया। उस वक्त सीमेन्ट की बहुत मुश्किल थी लेकिन श्री विजयसिंहजी नाहर ने आवश्यक सीमेन्ट का परमिट पास करवा दिया और नक्शा पास करवाने में भी उन्होंने बहुत सहयोग दिया। इसी बीच लोगों ने प्रधानाध्यापक श्री रामानन्द तिवारी को नियुक्त किया और काम बढ़ता गया। कक्षा 10वीं तक का शिक्षण देने की हमें अनुमति मिल गई फिर हायर सेकेण्डरी की कक्षाएं प्रारम्भ करने की अनुमति श्री विजय बाबू ने दिलवा दी। कार्यकर्ताओं का तथा अध्यापकों का बहुत बड़ा सहयोग रहा और करीब 2500 विद्यार्थी पढ़ने लगे। परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहने लगा। बड़ाबाजार में श्री जैन विद्यालय का बहुत नाम हो गया। और इसी तरह लोगों का हौसला बढ़ता गया और एक नया स्कूल हवड़ा में बनाने का निश्चय किया। वह भी एक साल में बनकर तैयार हो गया। सुबह लड़कियां एवं दोपहर में लड़के शिक्षा प्राप्त करते हैं। कुल मिलाकर 2300 लड़के-लड़कियां शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और कक्षा 10 तक की पढ़ाई चालू है। यहां भी उच्च माध्यमिक तक की शिक्षा देने का निश्चय है। हमारी सफलता का मुख्य कारण है यहां के कार्यकर्त्ताओं का जोश और संगठन सभी बड़े प्रेम से कार्य करते हैं। चुनाव यहां सलेक्सन से होता है। कभी वोटिंग की जरूरत नहीं पड़ती है। परिवार के रूप For Private & Personal Use Only विद्यालय खण्ड / २ www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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