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________________ ● देवेन्द्र पुगलिया, XIISc. एक व्यंग्य पूज्य गांधीजी, सादर प्रणाम ! आज आजादी के पावन दिवस पर, सश्रम आपको याद करते हुए देश ने अपना 48वां जन्म दिवस मनाया। आपने अपने पीछे एक खुशहाल देश का सपना रख छोड़ा था। देश ने इन 47 वर्षों में काफी प्रगति की है। देश में आपके त्याग, बलिदान व आदर्शों की स्मृति में हर शहर तथा गांव में, एक अदद महात्मा गांधी मार्ग बनाया जा चुका है । इस प्रकार पूरा देश आपके मार्ग पर चल रहा है । परन्तु दुर्भाग्यवश हर पथ पर रोड़े अपने स्वाभिमानी वजूद पर अटके हुए हैं, फलतः यह जीवन - वाहन या तो हर घड़ी जाम ( परेशान ) है या अन्ततः बुरा अंजाम है। 1 आप अहिंसा के मसीहा थे, आप पर गोली चली विरासत में मिला यह क्रम आज भी जारी है। एक प्रधानमंत्री को उसी के सुरक्षाकर्मियों नेमार डाला तो दूसरे को बम ब्लास्ट में ही उड़ा दिया । और यह सच है, हम अहिंसा के पुजारी है। इसलिए— "तब न थी, आज आपकी वो जरूरत है देश की हालत बयां क्या करें, बस शिकस्त है।" एम0 जी0 रोड पर एक मंत्री पुत्र ने कार को खम्भे से भिड़ा दिया, चक्कों ने खम्भा उड़ा दिया। कम्बख्त रास्ते में आता है, दुर्घटना कराता है। अगली बार उस मन्त्री पुत्र ने, हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International ब्रेक की जगह एक्सिलेटर दबा दिया। ओह ! परलोक का गियर लगा दिया। न गाड़ी बची, न मन्त्री पुत्र ! पार्लियामेन्ट हाऊस में मातम छा गया। अपोजीशन वालों ने तो बाद में जश्न ही मना लिया। दुखी मन्त्रीवर ने सोर्स लगाया, और गाड़ी की कम्पनी को ठप्प कराया, ट्रेफिक अधिकारी को निलंबित करवाया, तथा रोड कन्ट्राक्टर के यहां आई.टी. रेड डलवाया। अब जो इलेक्शन सर पे आया, तो मंत्रीवर ने नया ढोंग रचाया, बेटे की मौत को आतंकवादी साजिश बताया, और उसे देश का शहीद बनाया। यह सुन सिटीजेंस को रोना आया, और वोटों से जो विजयी बनाया, तो एक बार फिर अपने आप को, राजनीति का शिकार पाया। भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा छाया, जिसने देश की जड़ों को पुनः खोखला बनाया। एक बेरोजगार जो मंत्रीपुत्र की गाड़ी के नीचे आया, तदनुकूल "इंप्लायमेंट एक्सचेंज" में हर्षोल्लास छाया । अस्पताली कर्मचारी भी हंसते रहे, आखें और किडनी मरने से पहले हड़प गये । बीमा कम्पनी ने "बैंक गॉड" बतलाई, उसने इन्श्योरेंस जो न करवाई । इक्नामिस्टों एवं ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स ने भी खुशी जताई, पाप्युलेशन से आबादी (वो और उसकी आने वाली पुश्तें) जो कम हो गई, उसके दोस्तों ने भी राहत जताई, उधारों से छुट्टी जो पाई। इधर "मार्क टुल्ली" ने बी. बी. पर खबर जो सुनाई, तो "यू) एना) ओ०" तक ने मुस्कान दिखलाई, "इण्डियन आर्मी" में आने वाले युद्ध के लिए, एक बेरोजगार की भरती जो न हो पाई। प्रेस ने उसे गंभीर 'पोपुलेशन' से 'डिस्कनेक्ट' होने का खिताब दिया, तब बापू के इस देश ने उसके गरीब लाचार परिवार को मिट जाने का इनाम दिया, माफ कीजियेगा अमानवीयता की एक और कड़ी सुन जाइए :दिन ढले कहीं से आवाज आई "जरा सुनो भाई चिता तो बनवा लो लकड़िया महंगी हों तो उसकी डिग्रियां ही जला दो । For Private & Personal Use Only . हे राम !" ... आपका - एक भारतीय नागरिक विद्यार्थी खण्ड / ३० www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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