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________________ अमितकुमार तापड़िया, XII-A या देवी सर्व भूतेषु नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पद तल में। पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।। प्रसाद जी की ये पंक्तियां कुछ सोचने को विवश करती हैं। आर्यकालीन इतिहास में नारी को पुरुषों के समान अथवा उनसे भी ऊपर माना गया था। उन्हें भी पुरुषों की भांति पूजा, पाठ हवन इत्यादि के अलावा वेदों का भी ज्ञान था और इस बात के पुष्ट प्रमाण भी मिले हैं। मैत्रेयी का उदाहरण सर्वथा समीचीन होगा। शनैः शनैः भारतीय राजाओं के आलस्य एवं भोग-विलास ने विदेशियों को भारत पर अधिकार जमाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके परिणाम स्वरूप विभिन्न संस्कृतियां भारत में आईं। भिन्न विचारों, भिन्न जीवन पद्धति वाले इन विदेशियों की मानसिकता भारतीय दर्शन से भिन्न थी। उनके लिए जीवन मात्र भोग एवं प्रमोद के लिए था। परिणाम यह हुआ कि समाज में अनेक विसंगतियों ने घर कर लिया। स्त्रियों पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ। उन्हें केवल भोग की वस्तु समझा गया। मध्यकाल तक तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि स्त्रियों का घर से बाहर निकलना तक बंद हो गया। लोग अपनी प्राचीन आर्य संस्कृति को भूलने लगे और समाज में दहेज प्रथा, सतीप्रथा, परदाप्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों ने जन्म लिया। रीतिकाल और पूर्वमध्य काल के कवियों ने अपने आश्रयदाताओं की क्षीण मानसिकता को ध्यान में रखकर रचनायें लिखी जिससे नारी शब्द की गरिमा को ठेस पहुंची। तुलसीदास जैसे संत कवि की भी स्त्रियों (मध्यकालीन) के बारे में कोई विशेष सम्मान जनक धारणा नहीं थी। उन्होंने तो रामचरितमानस में एक जगह यह कह डाला कि "ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी"। शायद वे यह भूल गये थे कि वही ताड़ना की अधिकारिणी समय पड़ने पर भारतवर्ष की सत्ता भी संभाल सकती है और वही समय पड़ने पर दुर्गा अथवा काली के रूप में दुष्टों के संहार के लिए अवतार ले सकती है। वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में अगर देखें तो नारी की स्थिति में कुछ सुधार तो हुआ है परन्तु पूर्णत: वास्तविक न होकर कागजी ज्यादा प्रतीत होता है। आज भी अखबार की प्रमुख खबरों में छपा मिलता है कि अमुक को दहेज के लिए ससुराल वालों ने जिंदा जला दिया अथवा अमुक के साथ बलात्कार हो गया। महिला समिति की अध्यक्षा, जो एक ओर सभा में खड़ी होकर दहेज विरोधी भाषण देती है, को अपने घर में बहू को दहेज के लिए प्रताड़ित करते देखा जा सकता है। प्रसादजी ने भी कामायनी में कामदेव के माध्यम से मनु को लताड़ा है। विजयलक्ष्मी पंडित, मागेट थैचर, इंदिरा गांधी, भंडारनायके आदि उन नारियों के उदाहरण हैं, जिन्होंने नारी जाति की उन्नति एवं उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। किरण बेदी ने मैगसाइसे अवार्ड जीतकर देश का नाम ही नहीं रोशन किया है वरन् सम्पूर्ण विश्व की नजर में नारी जाति के प्रति सम्मान की दृष्टि प्राप्त की है। नारी सृजन करती है सम्पूर्ण विश्व का एवं उसका पालन पोषण भी करती है, इसीलिए वह महान् है। नारी अनुगता नहीं, सहचरी है। आज हर क्षेत्र में नारी आगे बढ़ी है। प्रधानमंत्री का पद संभालने से लेकर टैक्सी तक चलाती है। बोझा तक ढोती है और गृहस्थी संभालने से लेकर दफ्तर के कार्य भी निपटाती है। आज सब कुछ जानते हुए भी समाज नारी को उसका यथोचित स्थान क्यों नहीं दे पाया? यह एक ज्वलंत प्रश्न है, एक ऐसा यक्ष प्रश्न, जिसका समाधान तो खोजना ही होगा। हीरक जयन्ती स्मारिका विद्यार्थी खण्ड / १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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