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________________ गई है। अपने धर्म ग्रन्थ हमें असभ्य और अविकसित मानव-दिमाग की कल्पना प्रतीत होते हैं। हम देवालयों में जाना अपमान समझते हैं। क्योंकि वहां जूते खोलने होंगे, नतमस्तक होने से सम्भव है पेण्ट की क्रीज बिगड़ जाये लेकिन गिरजाघरों में जाकर खड़े होना आदर्श मानते हैं। पाश्चात्य वेश-भूषा, खान-पान और रहन-सहन को हम सभ्यता का प्रतीक मानते हैं संस्कृत और हिन्दी बोलना तो हेय समझा जाता है और अपनी नववधू के हाथों में हाथ डालकर सार्वजनिक स्थानों पर घूमना, होटलों में खाना और निर्लज्ज आचरण करना ही आधुनिकता का पर्याय है। धोती कुरता के प्रति हमारा ममत्व नहीं है। दूध, घी का प्रयोग पाश्चात्य पदार्थों के आगे आज फीका है। मां-बाप के प्रति हमारा कोई कर्तव्य रह गया है और न गुरु के प्रति श्रद्धा । न कहीं आत्मा में स्वाभिमान है और न शरीर में शक्ति और सौन्दर्य । जिस भारतीय संगीत में माधुर्व मिठास और कर्ण प्रिय स्वर थे उन्हें भुला दिया है जिस संगीत को सुनकर दुनिया के हजारों लोग मुन्ध हो जाते थे, भगवान तक नतमस्तक हो जाते थे उसे आज पाश्चात्य रेप संगीत ने ध्वस्त कर दिया है। आज लोग फूहड़ और बिना अर्थ के गानों पर थिरका करते हैं। माइकल जैक्सन आज नौजवान संगीत हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International प्रेमियों का भगवान माना जाता है। हमारे भारतीय गायक जिनके स्वरों में इतनी मिठास थी कि जंगल के प्राणी तक खिंचे चले आते थे उन्हें आज भुला ही दिया गया है न केवल पुरुष, बल्कि भारतीय नारियां भी इस प्रवाह में बहकर अपने कर्तव्य को भूल रही हैं। समानाधिकार की आंधी ने उनसे उनका नारीत्व छीन लिया है। न कहीं मातृत्व रह गया है और न कहीं पातिव्रत धर्म । पश्चिम की नारी की भांति आज भारतीय नारी भी गृहिणी के उत्कृष्ट आसन को ठुकराकर स्वच्छन्दता अपना रही है गृहकार्य उसके लिए अशिक्षिताओं का कर्म काण्ड है। लज्जा जो भारतीय नारी का कवच था आज मखौल की वस्तु बन गया है आज दूरदर्शन के माध्यम से संस्कृति प्रधान इस देश में कितनी अदूरदर्शिता का प्रदर्शन हो रहा है। और हम सभ्यता से असभ्यता की ओर निरन्तर बढ़ रहे हैं। आजादी की 47 वर्ष गांठ मनाकर भी हम पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता के गहरे दलदल में फंस गये हैं। अतः हम सबका कर्तव्य है कि इस बढ़ती हुई पाश्चात्य सभ्यता के वेग को अपनी पूरी शक्ति से रोककर राष्ट्र की भावी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करें, जिससे विश्व के कल्याण का द्वार उन्मुक्त हो सके। For Private & Personal Use Only विद्यार्थी खण्ड / १३ www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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