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________________ कि उनसे लोग के कल्याण का अंकुर कहीं फूटे। पश्चिमी सभ्यता पर टिप्पणी करते हुए वे कहते हैंएक मृषा जिसमें सब डूबे हुए हैं, क्योंकि एक सत्य जिससे सब ऊबे हुए हैं। एक तृषा जो मिट नहीं सकती इसलिए मरने नहीं देती, एक गति जो विवश चलाती है इसलिए कुछ करने नहीं देती स्वातंत्र्य के नाम पर मारते हैं, मरते हैं। क्योंकि स्वातंत्र्य से डरते हैं। __ अज्ञेय के काव्य में मौलिकता, नवीनता और ताजगी मिलती है। वे अनास्था और पराजय के कवि नहीं हैं। वे गति और संघर्ष के कवि हैं। नभ की चोटी उनका गंतव्य है। अज्ञेय की परिणति निश्शेष उत्सर्ग में, अपने को दे देने में है। आत्मीयता के दान में वे मनुष्य की मुक्ति देखते हैंमैंने देखा, एक बूंद सहसा उछली सागर के झाग से, रंगी गई क्षण भर ढलते सूरज की आग से, मुझको दीख गया हर आलोक छुआ अपनापन, है उन्मोचन नश्वरता के दाग से। ___ "असाध्य वीणा" अज्ञेय की सर्वश्रेष्ठ कविता है। इसमें उनकी समस्त जीवनदृष्टि और शिल्पबोध समाहित है। किरीटीतरू से निर्मित वज्रकीर्ति की इस मंत्रपूत वीणा का वादन कौन करे ? बड़े-बड़े कलाकारों का दर्प चूर-चूर हो गया। तब आए प्रियंवद, केश कम्बली, गुफा गेह। उन्होंने अपने को सौंप दिया उस किरीटी तरू को, डूब गये एक अभिमंत्रित अकेलेपन में और आरम्भ हुआ उनका नीरव एकालाप। केशकम्बली को स्मरण था- घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना। झिल्ली, दादुर, कोकिल-चातक की झंकार, पुकारों में संसृति की सायं-सायं, कमल कुमुद पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित जलपंथी की चाप। वे प्रार्थना करते हैं असाध्य वीणा सेतू उतर बीन के तारों में, अपने से गा, अपने को गा। ___ सहसा ब्रह्मा के अखंड मौन को व्यंजित करता हुआ एक स्वयंभू संगीत झनझना उठा। राजा ने सुना और उसमें सब कुछ निछावर कर देने का भाव उत्पन्न हुआ। रानी ने अनन्य प्यार का संगीत सुना। किसी को वह संगीत प्रभुओं का कृपावाक्य था, किसी को आतंकमुक्ति का आश्वासन, किसी को भरी तिजोरी में सोने की खनक, किसी को मंदिर की तालयुक्त घंटाध्वनि। विश्ववादक की वीणाध्वनि भी महाशून्य में इसी प्रकार बज रही है। भाषा का संस्कार अज्ञेय को बचपन से ही मिला था। शब्द चयन में एक सजगता उन्हें सर्वदा प्रेरित करती है। प्रत्येक शब्द अद्वितीय होता है। वे उसी अद्वितीय की खोज सदा किया करते हैं। लय के अन्वेषण में उन्होंने देश-विदेश की अनेकानेक यात्राएं की हैं। वे चमत्कारवादी नहीं है पर भावानुकूल छन्द की खोज अवश्य करते रहे हैं। आधुनिक-जीवन पर उनकी टिप्पणी ध्यातव्य है जिन्दगी के रेस्तरां में यही आपसदारी है रिश्ता नाता है, कि कौन किसको खाता है। सह शिक्षक - श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता हीरक जयन्ती स्मारिका अध्यापक खण्ड/७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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