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________________ 0विमल वर्मा साम्प्रदायिकता और इतिहास-दृष्टि विश्व पूंजीवाद के इस चरम एवं सर्वव्यापी संकट में हम जनवादी क्रांति के लिए प्रस्तुत हो रहे हैं। यह जनवादी क्रांति सामन्तवाद, साम्राज्यवाद और इनारेदार पूंजीवाद के विरुद्ध है। यह संघर्ष कृषि-क्रांति और राजसत्ता पर अधिकार के लिए किया जा रहा है। वर्तमान दौर में देशव्यापी वामपंथी आंदोलन के आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण का यही मुक्त स्वर है। इस संघर्ष में सहयोगी सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का आज मुख्य दायित्व यही है कि वे अपनी संघर्षमयी सृजनशीलता से जनमानस की चेतना का स्तर ऊंचा उठायें। शासक-शोषक वर्ग द्वारा निर्मित जीर्ण-शीर्ण विचारों, आदर्शों एवं संस्कारों का उन्मूलन कर जीवनोन्मुखी स्वस्थ चेतना को निर्मित करें और उसे प्रचारित-प्रसारित करें। व्यावहारिक अनुभव की कसौटी पर हमें दैनन्दिन-जीवन में विभिन्न प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी देखा जाता है कि कुछ साधक ऐसे हैं, लेकिन परिणाम में वे असफल होते जा रहे हैं। ऐसा क्यों? दरअसल किसी महत् कार्य के लिए मात्र लगनशीलता ही पर्याप्त नहीं है। किसी भी आन्दोलन में खासकर सांस्कृतिक क्षेत्र में हमें उस पूरी प्रक्रिया पर विचार करना पड़ेगा कि हमारी गतिविधि हमें इतिहास की किस दिशा में ले जा रही है। आज भारतीय बौद्धिकता को जैसे लकवा मार गया है। समाज के जब सचेत तबके में भी एक तरह की निश्चिन्तता, उदासीनता, बचकानापन और भी ज्यादा गहरा, ज्यादा साफ और ज्यादा निकट दिखायी देता है। आज जैसे हम एक ज्वरग्रस्त इमरजेंसी के अन्तराल में जी रहे हैं। क्या बिना अपने भीतर के अलगाव से मुक्ति पाये हम इस संकट से छुटकारा पा सकते हैं? कोई भी जाति संकट की घड़ी में अपने अतीत को, अपनी जड़ों को टटोलती है। यह आत्ममंथन की भी घड़ी है। संकट की घड़ी में अपनी परम्परा का मूल्यांकन करना, एक तरह से खुद अपना मूल्यांकन करना है। संस्कृति मनुष्य की आत्मचेतना का ही प्रदर्शन नहीं, यह उस सामूहिक मनीषा की उत्पति होती है जिसके द्वारा व्यक्ति विश्व से जुड़ता है। प्रत्येक जाति अपनी परम्परा की आंखों से यथार्थ को छानती है। स्थिति तो यह है कि हमारी चेतना की अंधेरी मिथकीय जड़ें, इतिहास के पानी को अपने ऊपर से बह जाने दे रही हैं। हम जैसे यथार्थ को नकार कर अतीत के मिथकों, प्रतीकों एवं दुःस्वप्नों में जी रहे हैं। आज जब हम समस्त मूल्यों और मान्यताओं का स्रोत अपनी चेतना में भी ढूंढ़ते हैं तो इस संदर्भ को समझने के लिए हमें भारतीय मनीषा के टेक्स्टचर की बुनावट को समझना पड़ेगा। हालत तो यह है कि हमारे बौद्धिक वैभव की शुरुआत जिन इतिहासविदों ने की, उसी के दुष्परिणाम और उनकी तार्किक परिणति के फलस्वरूप, वर्तमान विभीषिका का यह विकराल रूप दिखायी पड़ रहा है। व्यावहारिक स्तर पर इतिहास को झेलना और मनीषा के स्तर पर उसके दबाव को अस्वीकारना, यह हमें आत्मविभाजित, हमारे व्यक्तित्व को खंडित, हमारी आत्मा को खंडित नहीं करेगा तो और क्या करेगा? बिना इस उत्स को समझे हम अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति और अपनी जीवन-पद्धति के मूल स्रोतों को सचेत ढंग से नियोजित नहीं कर सकते। इसी तरह हम अपनी जातीय अस्मिता के प्रति अविश्वास को खत्म कर सकते हैं। प्रश्न उठता है कि वर्तमान, हमारे लिए ढोनेवाला बोझा क्यों बन गया है ? शायद इतिहासविदों की आत्म-छलना में ही वर्तमान संकट के बीज निहित हैं। ____ महिमामंडित अतीत के प्रति पूजा भरी श्रद्धा, अन्धविश्वास, भविष्य के प्रति अपार सम्मोहन के पीछे वर्तमान के प्रति जो गहरी अवज्ञा छिपी हुई है, उसे इतिहास की जड़ों में ढूंढ़ना पड़ेगा। एक ओर इतिहासकार का संबंध अतीत से होता है, दूसरी ओर उसकी महत्वपूर्ण भूमिका उस समाज के भावी निर्माण में होती है जिसका वह अध्ययन करता है। अतीत के साक्ष्य के सहारे उसके विवेचन विश्लेषण में इतिहासकार अपने समकालीन परिवेश से भी प्रभावित होता है इसलिए ऐतिहासिक व्याख्या की प्रक्रिया दोहरी बन जाती है। अर्थात् वर्तमान की आवश्यकताओं को विकास के नियमानुसार अतीत में ढूंढ़ा जाय और अतीत के बिम्ब का वर्तमान से सामन्जस्य स्थापित किया जाय। अतीत का बिम्ब भविष्य में क्या होगा यह तो इतिहासकार की ही मौलिक देन होती है। लेकिन बहुत से इतिहासकारों ने इसे ऐसे प्रस्तुत किया है जिससे प्रतिक्रियावादी राजनीतिक भ्रमों और मिथकों की सृष्टि हो रही है। उदाहरण के लिए आर्य जाति की श्रेष्ठता का सिद्धांत निर्मित किया गया जिसका फायदा फासिस्टों ने उठाया। द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर आज तक उसकी असह्य यातना सबको झेलनी पड़ रही है। दूसरा सिद्धांत यह गढ़ा गया कि हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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