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________________ पर चढ़ा कर मन्दिर, मस्जिद की तलाश में निरीहों का खून बहा रहे धर्मकीर्ति को राहुल ने “भारतीय हेगल" कहा है। धर्मकीर्ति के साथ सिद्ध सरहपा के इन दोहों को साथ रख लेने पर राहुल के विचारों को और सफाई से समझा जा सकता है। सरहपा राहुल के प्रिय लेखक हैं। अत्युक्ति न होगी अगर कहें कि राहुल आज के सरहपा है विभिन्न अर्थो में। जड़ णग्गा विअ होई मुत्ति ता सुणह सिआलह। लोमु (3) पांडणें अस्थि सिद्धि ता जुवइणिअम्बह।। पिच्छीमहणे दिट्ठ मोक्ख (ता मोरह चमरह) उच्छे भोअणे होइ जाण ता करिह तुरंगह॥ चर्यामीति कोश: पृ0 188 सं० प्रबोधचन्द्र बागची, शांति भिक्षु, सरहपा ने यहां जैनियों के बाह्याचार पर व्यंग किया है। अगर हम राहुल के इस वाक्य से उनके धर्म और ईश्वर संबंधी अवधारणा की चर्चा करें कि “मजहब और खुदा गरीबों का सबसे बड़ा दुश्मन है" तो उनके विचारों को समझने में सहूलियत होगी। अपनी "साम्यवाद ही क्यों?" पुस्तक में राहुल ने साम्यवाद तथा धर्म और ईश्वर पर विचार करते समय लिखा है कि "मनुष्य जाति के शैशव की मानसिक दुर्बलताओं और उससे उत्पन्न मिथ्या विश्वासों का समूह ही धर्म है। यदि उसमें और भी कुछ है, तो वह है पुरोहितों और सत्ताधारियों के धोखे फरेब, जिनसे वह अपनी भेड़ों को अपने गल्ले से बाहर जाने देना नहीं चाहते। मनुष्य के मानसिक विकास के साथ-साथ यद्यपि कितने ही अंश में धर्म ने भी परिवर्तन किया है, कितने ही नाम भी उसने बदले हैं, तो भी उनसे उसके आंतरिक रूप में परिवर्तन नहीं हुआ है। वह आज भी वैसा ही हजारों मूढ़ विश्वासों का पोषक और मनुष्य की मानसिक दासताओं का समर्थक है, जैसा कि पांच हजार वर्ष पूर्व था।" ___ और ईश्वर ? उसके संबंध में राहुल का कहना है कि “धर्म और ईश्वर का प्राय: अटूट संबंध है- यह भी मनुष्य के शैशव काल के भयभीत अन्त:करण की सृष्टि का एक विकसित रूप है। वस्तुत: ईश्वर मनुष्य का मानसपुत्र है।" ईश्वर का खयाल हमारी सभी प्रकार की प्रगति का बाधक है। मानसिक दासता की वह जबर्दस्त बेड़ी है। शोषकों का वह अस्त्र है, क्योंकि उसके सहारे वह कहते हैं- “धनी गरीब उसके बनाये हुए हैं वह जो करता है, सब ठीक करता है उसकी मर्जी पर अपने को छोड़ दो।" राहुल समाजशास्त्री थे। हर वस्तु के कार्यकारण पर गंभीरता से विचार करते थे। ईश्वर और धर्म की चर्चा में वे इस नतीजे पर पहुंचे कि “ईश्वर पूंजीपतियों के बड़े काम की चीज है। यदि ईश्वर का ख्याल पहले से न होता तो आज वह उसका आविष्कार करते। यही वजह है कि थके दिमाग वाले शोषकों के पोषक कितने ही वैज्ञानिक धर्म और ईश्वर के समर्थक देखे जाते हैं।" अगर राहुल जिन्दा होते तो जोर देकर इतना वे और कहते कि "ईश्वर आज के राजनीतिज्ञों के भी बड़े काम की चीज है। वे कितने ईश्वर भक्त हैं कि देश की एकता को भी दांव ईश्वर और धर्म के संबंध में यह धारणा किसी एक मजहब या सम्प्रदाय के सम्बन्ध में नहीं थी। विश्व के नक्शे में धर्म का जो अमानवीय रूप उभरा है उसी के विश्लेषण पर उन्होंने यह राय कायम की थी। "तुम्हारी क्षय' पुस्तक में उनके विचार उल्लेखनीय हैं। उनका कहना है कि यह दलील गलत है कि सभी धर्म समान भाव से सदुपदेश देते हैं। उनका कहना है कि दुनिया के सभी मजहबों में भारी मतभेद है। ये मतभेद सिर्फ विचारों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि पिछले दो हजार वर्षों का इतिहास बतला रहा है कि इन मतभेदों के कारण मजहबों ने एक-दूसरे के ऊपर जुल्म के कितने पहाड़ ढाए। यूनान और रोम के अमर कलाकारों की कृतियों का आज अभाव क्यों दीखता है? इसलिए कि वहां एक मजहब आया जो ऐसी मूर्तियों के अस्तित्व को अपने लिए खतरे की चीज समझता था। ईरान की जातीय कला, साहित्य और संस्कृति का नामशेष-सा क्यों हो जाना पड़ा? क्योंकि उसे एक ऐसे मजहब से पाला पड़ा जो इंसानियत का नाम भी धरती से मिटा देने पर तुला हुआ था। मेक्सिको और पेरू, तुर्किस्तान और अफगानिस्तान, मिस्र और जावा जहां भी देखिये, मजहबों ने अपने को कला, साहित्य और संस्कृति का दुश्मन साबित किया और खून खराबी ? इसके लिए तो पूछिये मत। अपने-अपने खुदा और भगवान के नाम पर अपनी-अपनी किताबों और पाखंडों के नाम पर मनुष्य के खून को उन्होंने पानी से भी सस्ता कर दिखलाया। पोप और पेत्रियार्क, एंजिल और ईसा के नाम पर प्रतिभाशाली व्यक्तियों के विचार स्वातंत्र्य को आग और लोहे के जरिये दबाते रहे। कितनों को जीते जी आग में जलाया, कितनों को ची से दबाया। भारतीय धार्मिक मदान्धता पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा कि "हिन्दुस्तान की भूमि ऐसी धार्मिक मदान्धता की कम शिकार नहीं रही। इस्लाम से आने के पहले भी क्या मजहब ने वेदमंत्र बोलने और सुनने वालों के कानों में पिघले रांगे और लाख को नहीं भरा? ...इस्लाम के आने के बाद तो हिन्दू धर्म और इस्लाम के खूरेज झगड़े आज तक चल रहे हैं। कहने के लिए इस्लाम शक्ति और विश्वबन्धुत्व का धर्म कहलाता है, हिन्दू धर्म ब्रह्मज्ञान और सहिष्णुता का धर्म बतलाया जाता है। किन्तु क्या इन दोनों धर्मों ने अपने इस दावे को कार्यरूप में परिणत करके दिखलाया है?" राहुलजी के प्रश्न का उत्तर है नहीं। न तब और न आज। राहुल ने बड़े कठोर शब्दों में लिखा- “हिन्दुस्तानियों की एकता मजहबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर।" धर्म का यह हिंसात्मक और फरेबी रूप राहुल को पसन्द नहीं था। जिन दिनों राहुल सक्रिय राजनीति कर रहे थे उन दिनों उन्होंने निहित स्वार्थो द्वारा धर्म का घृणित उपयोग देखा था। इस प्रकार धर्म और ईश्वर के मसले पर राहुल कटु से भी अधिक कटु थे। सभाओं में वे अपनी बात कहने में हिचकिचाते नहीं थे। बिहार की बहुतेरी जनसभाओं में उन्हें सक्रिय विरोध का सामना हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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