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________________ श्रीनारायण पाण्डेय, व्यक्तित्व में ये सारी विशेषताएं विद्यमान थीं। राहुल भी एक साथ ही बौद्ध त्रिपटकाचार्य, पुरातात्विक, साहित्यकार, घुमक्कड़, इतिहासकार, लिपिविशेषज्ञ, भाषाविद् एवं समाजशास्त्री थे। भारतीय अस्मिता की तलाश में भटकने वाले राहुल तथा बिहार के किसान आंदोलन में सक्रिय राजनीतिज्ञ राहुल एक ही थे। साम्राज्यवादी शिकंजे से देश को मुक्त देखना उनका सपना था और सामन्ती समाज व्यवस्था के दुष्परिणामों तथा कुसंस्कारों से मुक्त समाज व्यवस्था का निर्माण उनकी आकांक्षा थी। इस सबके लिए उन्होंने साम्यवादी चिन्ता-धारा का सहारा लिया था। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष किया। राहुल की चिन्ता-धारा ने एक बड़े समुदाय को जागरुक किया। राहुल ने एक ऐसे समय में यह काम शुरू किया था, जब हिन्दी भाषा में इस विषय की पुस्तकों का अभाव था। राहुल सांकृत्यायन की सामाजिक दृष्टि का दस्तावेज उनकी पुस्तकें है। राहुल जी का जन्म 1893 में हुआ था और मृत्यु 1963 में हुई थी। यह काल भारतीय इतिहास में चुनौतियों का काल है। अंग्रेजी साम्राज्यवाद का उत्कर्ष और अपकर्ष, स्वाधीनता संग्राम, स्वाधीनता प्राप्ति, बाद के करीब 25 वर्ष, दो विश्वयुद्ध, रूस में समाजवाद की स्थापना, हिन्दू-मुस्लिम झगड़े, हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना, भारत विभाजन, साम्प्रदायिक दंगे, गांधीवाद और समाजवाद, क्रांतिकारियों का बलिदान, किसान मजदूर आंदोलन, सामंती एवं पूंजीवादी मूल्यों की टकराहट, वर्ण-व्यवस्था, अछूतों का उभार, मौलवाद की कट्टरता, भाषाई एवं सांस्कृतिक आंदोलन, इतिहास की पुनर्व्याख्या, साम्यवादी चिंताधारा का प्रसार, राजनीति में मूल्यों की गिरावट, बढ़ती अवसरवादिता इस प्रकार के बहुतेरे परिवर्तन भारतीय जीवन में हो रहे थे, जिनका प्रभाव जनमानस पर पड़ रहा था। राहुलजी उन बुद्धिजीवियों में नहीं थे जो निरपेक्षता का बाना पहन कर खुद को और देशवासियों को धोखा देते हैं। राहुल ऐसे बुद्धिजीवी थे, जिन्होंने प्रगति का समर्थन और प्रगतिविरोधी ताकतों का विरोध किया है। एक साधारण से निबन्ध के द्वारा उनके विचारों का परिचय देना दुष्कर है। इसमें कुछ ऐसे विचारों को ही प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसे राहुल जी अवैज्ञानिक एवं प्रगति विरोधी मानते थे। उनके ये विचार आज के संदर्भ में और भी प्रासंगिक हो उठे हैं। अतएव उनके शतीवर्ष में इस चर्चा की विशेष प्रासंगिकता राहुल सांकृत्यायन : चिन्तन की दिशायें राहुल सांकृत्यायन हिन्दी नवजागरण के निर्मित और निर्माता दोनों थे। राहुल सांकृत्यायन के सम्बन्ध में लिखते हुए उनके बौद्धिक मित्र डॉ. महादेव साहा ने राहुल की तुलना यूरोपीय नवजागरण के अग्रदूतों के साथ की है। बौद्ध दर्शन के अध्ययन में निमग्नता का काल हो अथवा साम्यवादी विचार धारा से प्रेरित हो यायावरी का काल, राहुल अपनी सोच-समझ, विचार-विवेचन में एक महान् पुरुष थे। यूरोपीय नवजागरण के अग्रदूतों की ही तरह उनके ज्ञान की सीमा नहीं थी। अपने इस मन्तव्य के लिए उन्होंने फ्रेडरिक एन्गेल्स की पुस्तक “प्रकृति का द्वन्दवाद" की भूमिका से उद्धरण दिया है। एन्गेल्स ने यूरोपीय नवजागरण के अग्रदूतों की चर्चा करते समय लिउनार्दो दा विची, अल्ब्रेख्ट ड्रेशर, मेकियावेली, लूथर जैसों के अवदान का हवाला देकर कहा है कि ये सभी केवल एक विषय में पारंगत रहे हों, ऐसा नहीं। एक ही साथ बहुतेरे विषयों के जानकार थे। इनकी सफलता का रहस्य यह था कि ये तत्कालीन आंदोलनों से जीवनी शक्ति प्राप्त करते थे। जन संघर्षों में कभी कलम तो कभी तलवार लेकर शरीक होते थे। जीवन की इस वास्तविकता के बीच वे तरह-तरह के वैज्ञानिक सूत्रों के आविष्कर्ता थे तो राजनैतिक चिन्ताधारा के प्रवक्ता एवं सामाजिक तथा धार्मिक अवरोधों के संस्कारक भी थे। एंगेल्स के मत का सारांश इसलिए देना पड़ा कि राहुल के बहुआयामी भारतीय अस्मिता की तलाश, वैज्ञानिक चिन्ताधारा का प्रसार और देश निर्माण, राहुल की चिन्ताधारा का त्रिकोण है। जिसके केन्द्र में भारतीय जन के पूर्ण विकास की कामना ही मुख्य थी। चाहे इतिहास हो, चाहे धर्म, संस्कृति या दार्शनिक चिंताधारा, समाज व्यवस्था का ढांचा, भाषा, सबके प्रति राहुल की वैज्ञानिक दृष्टि एक-सी है। जो तर्क सम्मत नहीं है, वह अग्राह्य है। इसी से स्थिरता या जड़ता का नाम-निशान उनके चिन्तन में गायब है। शुरुआत राहुल की इतिहास संबंधी अवधारणा से की जाय। राहुल हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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