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| आशीर्वचन
नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेण तहेव य। खंतीय मुत्तीए,
वड्ढमाणो भवाहि य ।। तुम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, शान्ति-क्षमा और मुक्ति-निर्लोभता के पथ पर सतत आगे बढ़ो।
-उत्तराध्ययन सूत्र २२/२६ संसार सागर घोर तर कन्ने ! लहु लहु। हे पुण्य शालिनीकन्ये ! तुम संसार सागर को अतिशीघ्र पार करो।
-उत्त० २२/३१ भदते ! भदंते ! अभग्गेहिं नाण-दंसणचरित्तेहि अजियाइं जिणाहि इंदियाई
जियं च पालेहि समणधम्मं ॥ तुम्हारा भद्र (कल्याण) हो। तुम निरतिचार ज्ञान-दर्शन और चारित्र से नहीं जीती हुई इन्द्रियों को जीतो, विजयी बनकर श्रमण धर्म का पालन करो।
-कल्पसूत्र ११२
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