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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व बनाया तो भयंकर गर्मी के प्रकोप के कारण लघुमुनि को ज्चर हो गया। फलतः चातुर्मास प्रारंभ होने से १० दिन रहते लुधियाना से चातुर्मास के लिए प्रस्थान किया। फरीदकोट वर्षावास श्रद्धेय चरितनायक, वर्ष १६८५ के मंगलमय वर्षावास के लिए मुल्लापुर, जगरावां, मोगा, तलवंडी, रोड़े होते हुए फरीदकोट पधारे। आबालवृद्ध स्वागत के लिए उमड़ पड़ा। भव्य स्वागत के साथ वर्षावास हेतु आपका नगर प्रवेश हुआ। चातुर्मास में तप-त्याग की अभूतपूर्व बहार आई। आपके साथ एक मुनि थे श्री भक्तमुनिजी म. उन्होंने ५१ दिन की तपस्या की। पारणा महोत्सव समायोजित किया गया। यह वर्षावास ऐतिहासिक सिद्ध हुआ। फरीदकोट से श्रद्धेय चरितनायक कोटकपूरा पधारे। निर्माणाधीन स्थानक गुरुदेव की मंगलमयी सम्प्रेरणा से पूर्णाहुति की दिशा में अग्रसर हुआ। स्थानक भवन के हाल का “अमरसिंह प्रेयर हॉल” नामकरण हुआ। चरितनायक के चरणों में मुमुक्षु की दीक्षा कोटकपूरा से श्रद्धेय श्री सुमन मुनि जी म. जैतों मण्डी पधारे। जैतों जैन समाज का एक समृद्ध भक्ति भावना वाला क्षेत्र है। यहां के अध्यक्ष श्री विजय कुमार जी जैन एक धर्मश्रद्धा सम्पन्न श्रावक हैं। यहीं पर आपके श्री चरणों में खेयोवाली ग्राम के निवासी मुमुक्षु श्री मेजरसिंह ने जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की। यह २५ दिसम्बर सन् १६८५ का मंगलमय दिवस था। नवदीक्षित मुनि का नाम श्री गुणभद्र मुनि घोषित किया गया। दीक्षा के बाद भी कुछ समय आप यहां विराजित रहे। भठिण्डा का श्री संघ वर्षावास की प्रार्थना के साथ आपके चरणों में उपस्थित हुआ जिससे द्रव्य-क्षेत्र-काल भाव की मर्यादा रखते हुए आपने स्वीकार कर लिया। गीदड़वाह में जैतों से श्रद्धेय चरितनायक भठिण्डा को स्पर्शते हुए मण्डी गीदड़वाह पधारे। यहां पर कविचक्रचूड़ामणि श्रद्धेय श्रीचन्दन मुनि जी म. के दर्शन हुए। श्रद्धेय कवि जी म. ने आपका गद्गद् हृदय से स्वागत किया। श्रद्धेय श्री के वात्सल्य तथा कृपा भाव से आप कृतकृत्य बन गए। ___यहीं पर एक वृद्ध संत थे श्री खजानचन्द जी म. जो उन दिनों रुग्ण चल रहे थे। आप सभी ने उनकी पूर्ण सेवा का लाभ लिया। संयोग से आप चारों मुनिराज भी गीदड़वाह में अस्वस्थ हो गए। स्थानक के नीचे ही डा. घई का क्लिनिक है। डा. साहब ने सेवा प्रसंग पर तनमन-धन से सेवा लाभ लिया। वर्षावास काल सन्निकट था। आप श्री अनुभव कर रहे थे कि गीदड़वाह में मुनियों को कम से कम एक सेवाभावी मुनि की अति आवश्यकता है। सो आपने अपने नवदीक्षित शिष्य श्री गुणभद्रमुनि जी म. को मुनियों की सेवा में समर्पित कर दिया। भठिण्डा वर्षावास गीदड़वाह से श्रद्धेय चरितनायक भठिण्डा के लिए प्रस्थित हुए। श्रावक-श्राविकाओं के विशाल समूह ने आपका वर्षावास प्रवेश पर भव्य स्वागत किया। वर्षावास काल में अनेक धार्मिक गतिविधियाँ सम्पन्न हुई। आपके पावन सान्निध्य में "श्री लाला भोजराज जैन स्कूल" की स्थापना तथा शिलान्यास उनके ही पुत्र तथा पुत्रवधु द्वारा सम्पन्न किया गया। ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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