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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
नदी का रौद्ररूप देखने एक गाँव के जमींदार आ गये । उन्होंने भगत कर्मचन्द को रोकना चाहा किंतु वे रुके नहीं । कदम पानी में आगे से आगे बढ़ते गये । स्थिर एवं निश्चल । ... भगत कर्मचंद चिंतन करते कालीबेही को पार करते जा रहे थे कि नमस्कार महामंत्र से भवसागर तिरा जा सकता है फिर कालीबेही की क्या बिसात?
जमींदार चीखते-चिल्लाते रहे - भगत लौट जा किंतु भगत तो सघन पानी और सघन निशा के निविड़ अंधकारमें विलीन होता गया। जमींदार का दिल धक् धक् करने लगा कि कहीं भगत डूब न जाय और कहीं बह न जाये । ... जमींदार का सिर चकराने लगा वह सीधा अपने घर चला आया किंतु मन-मस्तिष्क में वही प्रश्न कि भगत का क्या हुआ, घर पहुँचा भी या नहीं ।
ज्यों ही प्रभात हुआ, जमींदार सुलतानपुर की ओर प्रस्थित हुआ। भगत के घर आया, पूछा भगत के बारे में तो पता चला कि वह तो धर्मस्थान में है तथा सामायिक करके लौटेंगे। जमींदार भी वहीं आ पहुँचा। भगत को धर्मध्यान में तल्लीन देखकर जमींदार के जीव में जीव आया तथा गुरुदेवों से विगत घटना कही और कहामहाराज जी, चमत्कार ही इसे बचा ले आया है यहाँ बाकी कालीही नागिन सी बलखाती बही जा रही थी, कल सायं ।
नवदीक्षित मुनि ने उक्त घटना- सुनी तो नमस्कार महामंत्र पर श्रद्धा और बलवती हुई तथा भगत कर्मचंद की आस्था और श्रद्धा को सराहा। भगत कर्मचंद ने भी यही स्वीकारा - गुरुदेव ! यह तो नमस्कार महामंत्र का चमत्कार है एवं सत्गुरु की कृपा का ही सुफल है। श्रद्धा के विषय में जो कहा है वह सच ही है
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" श्रद्धा ही ते सारधार, श्रद्धा ही ते खेवोपार । श्रद्धा बिना जीव वार, निश्चय कर मानी है । । "
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ऐसा क्यों होता है?
वर्षावास के पश्चात् पुनः विहार-क्रम प्रारंभ हुआ । कपूरथला होते हुए पुनः जालंधर पधारे। उसी समय अमृतसर का वर्षावास व्यतीत करके व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी म. भी अपनी शिष्य सम्पदा सहित कपूरथला पधारे। किंतु जालंधर नहीं पधारे ।
हुआ यूं कि विगत वर्षावास में स्वामी जी श्री प्रेमचंदजी म.सा. ध्वनिवर्द्धक यंत्र में बोले किंतु व्याख्यान - वाचस्पति श्री मदनलालजी म. ध्वनिवर्द्धक यंत्र के प्रबल विरोधी थे । ... पंजाब श्रमणसंघ के सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि ध्वनिवर्द्धक यंत्र का प्रयोग करने वाले सन्तों के साथ सम्भोग/सम्बन्ध नहीं रखा जाय किंतु आचार्य श्री आत्मारामजी म. ने उन्हें चातुर्मास आदि की आज्ञा देकर व्यवहार स्थापित किया, अतः व्या. वा. श्री मदनलालजी म. नाराज थे। युवाचार्य श्री शुक्लचन्द्र जी म.सा. भी ध्वनिवर्द्धक यंत्र का प्रयोग नहीं करते थे फिर भी युवाचार्य श्री ने भी चातुर्मास की आज्ञा आचार्य श्री से मंगवाई थी अतः श्री मदनलालजी म. ने उनसे भी सम्बन्ध विच्छेद कर लिया ।
युवाचार्य श्री जी को जब उपर्युक्त बात का पता चला तो श्री मदनलाल जी म. को मनाने के लिए शिष्य मण्डली सहित कपूरथला पधारे। लेकिन बातचीत का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका और मामला अनिर्णित ही रहा, फलतः पुनः जालंधर शहर में लौट आये । कतिपय दिनों के बाद श्री मदनलालजी म. भी जालंधर शहर पधारे । यहाँ भी किसी भी प्रकार का व्यवहार स्थापित नहीं किया श्री मदनलालजी म.ने । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए श्री एस. एस. जैन सभा, पंजाब के वरिष्ठ अधिकारियों ने, सदस्यों ने अथक प्रयत्न करके दोनों में समझौता कराया । यह सारा संवाद - विसंवाद, पक्ष-विपक्ष, कल्प- अकल्प नवदीक्षित मुनि ने भी भलिभाँति जानासमझा। लघु मुनि ने चिंतन किया- “लघु लघु स्थितियाँ भी
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