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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
जगदीश मतिजी। इनमें से प्रथम की एक शिष्या श्री जी (३) श्री चन्दा जी (४) श्री माणक देवी जी (५) श्री फूलमति थी। द्वितीय की शिष्या श्री प्रकाशवती जी है। रत्न देवी (६) श्री ईश्वरा देवी जी (७) श्री राधादेवी जी । तृतीय आर्या की चार शिष्याएं हैं -- (१) श्री कृष्णा जी (क) श्री हीरादेवी जी की शिष्या विद्यावती जी म. (इनकी एक शिष्या है श्री सुनीता जी) (२) श्री रमेश ।
तथा उनकी शिष्या श्री प्रेमाजी म. हुई। कुमारीजी (इन्द्राजी) (३) श्री कमल श्री जी (४) श्री
(ख) महार्या श्री पन्नादेवी जी म. की तीन शिष्याएं सन्तोष जी। इन साध्वियों की कई-कई शिष्याएं हैं।
हुईं - (१) श्री जयंतिजी (२) श्री राजकली जी (३) श्री __ श्री द्रौपदांजी महार्या की द्वितीय शिष्या श्री मोहनदेवी
हर्षावती जी। इनमें से प्रथम साध्वी की दो शिष्याएं जी की चार शिष्याएं हुईं - (१) श्री विमलमति जी (२)
हुईं - (१) श्री प्रज्ञावती जी म. एवं श्री विजेन्द्र जी। श्री श्री रोशनमतिजी (३) रुक्मणी जी (४) श्री राजेश्वरी
प्रज्ञावती जी की तीन शिष्याएँ हुईं - (१) श्री माया जी। इनमें से प्रथम की एक शिष्या थी श्री गोपी जी
देवीजी (२) श्री प्रमोद कान्ता जी आदि.... (जम्मू में थी) द्वितीय की दो शिष्याएं हुईं - (१) श्री
श्री राजकली जी की दो शिष्याएं हैं - (१) श्री हुक्म देवी जी (२) श्री केसरा देवी जी। श्री हुक्मदेवी जी
सरलाजी (२) श्री शीलाजी। श्री सरलाजी की दो शिष्याएं की तीन शिष्याएं हुई - (१) श्री स्वर्ण प्रभा जी 'वीरमती'
हैं) (१) श्री कुसुम जी (२) डॉ. श्री अर्चना जी। श्री (२) प्रवीण कुमारी जी (३) निर्मल कुमारी जी।
कुसुम जी की तीन शिष्याएं हैं - (१) श्री साधना जी, श्री केसरा देवी जी म. की दो शिष्याएं हैं -- श्री (२) श्री करुणा जी (३) श्री सुभाषा जी। श्री अर्चना जी कौशल्याजी म. एवं श्री नीति श्री जी म. । श्री कौशल्याजी की दो शिष्याएँ हैं - (१) श्री मनीषाजी (२) उपमा जी म. की चार शिष्याएं तथा तेरह प्रशिष्याएं हैं। तथा वन्दना जी अन्तेवासिनी है। शेष यथा स्थान ।
श्री राजेश्वरी जी म. की तीन शिष्याएँ हैं - (१) श्री हर्षावती जी की एक शिष्या हुई - श्री अशरफी श्री शकुन्तला जी (२) श्री प्रमोद कुमारी जी (३) श्री जी और इनकी श्री स्नेहलता जी (मुन्नी) शिष्या हैं। तृप्ताजी। (शेष विवरण इतिहास में पढ़िए)
(ग) महासती श्री चन्दाजी म. की तीन शिष्याएँ प्रवर्तिनी श्री राजमती जी महाराज
हुई - (१) श्री देवकी जी (२) श्रीमती जी (३) श्री
धनदेवीजी। प्रथम की शिष्यावली नहीं है। आपका जन्म स्यालकोट के सम्पन्न जैन कुल में हुआ। आपने प्रवर्तिनी श्री पार्वती जी म. से वि.सं.
श्रीमती जी म. की दो शिष्याएं हुईं -- (१) श्री १६४८ वैशाख सुदी १३ को अमृतसर में दीक्षा अंगीकार
हाकम देवीजी लाहौरवाली (२) महार्या श्री लज्जावती जी की। अपनी गुरूणी जी की सेवा में आप कई वर्षों तक
म.। श्री लज्जावती जी म. की चार शिष्याएं हुईं - (१) जालंधर में रहीं। गुरूणीजी के देहावसान के पश्चात् आप
श्री दयावती जी म. (२) श्री अभय कुमारी जी म. (३) प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित हुईं। वि.सं. २०१० में आपका
श्री चम्पाजी म. (४) श्री दीपमाला जी म.। स्वर्गवास जालंधर में ही हुआ। स्वाध्याय, ध्यान, जप, श्री अभय कुमारी जी म. की तीन शिष्याएं हैं - मौन आदि में आपकी विशेष रूचि थी। आपकी सात (१) शांता जी (२) श्री पदमा जी (३) श्री मीना जी। शिप्याएं हुईं - (१) श्री हीरादेवी जी (२) श्री पन्नादेवी इनकी चार प्रशिष्याएँ भी हैं।
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पंजाब श्रमणी परंपरा
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