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________________ वंदन - अभिनंदन ! शुभकामना गुरुदेव पूज्य श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमन कुमार जी म.सा; का सर्व प्रथम सान्निध्य वानियमबाड़ी में यह जानकर अति प्रसन्नता हुई कि श्रमणसंघीय मंत्री हुआ। मैं श्रीसंघ सहित पूज्य गुरुदेव के दर्शनार्थ मुनि श्री सुमनकुमार जी म.सा. का दीक्षा स्वर्ण जयंति का वानियमबाड़ी गया। दर्शन एवं प्रवचन से मन प्रभावित आयोजन हो रहा है। पूज्य गुरुदेव का सान्निध्य १६६० हुआ। पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में नेहरूबाजार मद्रास दौड्डवालापुर चातुर्मास में हुआ, जो आज तक बना हुआ के चातुर्मास की विनति श्री संघ ने कई वर्षों तक की और है। गुरुदेव की स्पर्शना हमारे शूले (अशोक नगर) बाजार हमारे क्षेत्र की स्पर्शना तो हुई लेकिन चातुर्मास का अवसर में भी हुई। गुरुदेव की प्रवचन शैली मधुर एवं आगम नहीं मिला, हम तो अपनी पुण्यायी की कमी ही समझते सम्मत है। आप श्री जी एक अनुभवी एवं चिन्तनशील हैं। आप श्री जी की स्वर्ण दीक्षा जयन्ति के अवसर पर सन्त रहे हैं। जब कभी भी संघ व समाज में कोई विपरीत मोविज की ओर से हार्दिक बधाई। स्थिति उत्पन्न होती है तो आप श्री जी संघ हित को ही महत्व देते हैं न कि किसी व्यक्ति विशेष को। D सम्पतराज बोहरा अध्यक्ष, एस.एस. जैन संघ __ आप अपनी बात निडरता एवं पूर्ण विश्वास के साथ नेहरू बाजार, चेन्नै समाज के सामने रखते हैं जो कि सर्वमान्य होती है। आप श्री जी के दीक्षा स्वर्ण दिवस के अवसर पर मेरे समस्त मरलेचा परिवार एवं शूले श्री संघ की हार्दिक गुरुदेव पूज्य श्री सुमनमुनि जी का सान्निध्य वर्षों से शुभ कामना ! रहा है। मैंने पूज्य गुरुदेव श्री जी के जीवन में जो सिरेमल मरलेचा सहजता, सरलता-निष्कपटता है का दिग्दर्शन अति निकटता अध्यक्ष, श्री अ.भा.श्वे.स्था.जैन कांन्फ्रेंस, कर्नाटक शाखा-बैंगलोर से किया। महाराज श्री जी के बारे में जो भी लिखू कम ही रहेगा। पूज्य सुमन मुनि जी म. के गुरु सरलात्मा पूज्य श्री महेन्द्रमुनि जी म. मालेरकोटला में आठ वर्ष तक | गुणवंत वन्दन भाव | स्थिरवास रहे। उनके श्री चरणों में रहकर मुझे बहुत कुछ पूज्य गुरुदेव श्री मुनि सुमनमुनि जी म.सा.का ५०वां सीखने को मिला है। सन् १६८२ में उनके स्वर्गवास के दीक्षा स्वपर्ण जयन्ति दिवस टी.नगर में मनाया जा रहा __पश्चात् हमारा क्षेत्र सूना-सूना रह गया है। है। यह सुनकर मन को प्रसन्नता हुई। इस शुभ अवसर मैं पंजाब से लगभग प्रतिवर्ष ही पूज्य श्री सुमन मुनि पर हार्दिक वन्दन एवं मंगल कामना प्रस्तुत करता हूँ। जी के दर्शनार्थ जाता रहता हूँ। अब दो वर्ष से अस्वस्थ सम्पतराज मरेलचा रहने के कारण नहीं जा पा रहा हूँ। इच्छा तो रहती है अशोकनगर (शूले) बैंगलोर दर्शनों की कब होंगे भाग्य ही जाने । २३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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